चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर पर्व मनाया जाता है. ये पर्व राजस्थान में मुख्य रूप से मनाया जाता है. वैसे तो इस त्योहार की शुरुआत होली के दूसरे दिन से होती है. और अगले सोलह दिनों तक मनाया जाता है. और चैत्र शुक्ल की तृतीया को ये पूर्ण होता है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सैभाग्य के लिए व्रत रखती हैं. गणगौर तीज को सौभाग्य तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. 


गणगौर तीज के एक दिन पहले कुंवारी और नवविवाहित महिलाएं पूजी हुई गणगौर को नदी, तालाब, सरोवर में पानी पिलाती हैं. और दूसरे दिन शाम के समय विसर्जित कर दिया जाता है. गणगौर का व्रक कुंवारी महिलाएं मनचाहे वर के लिए रखती हैं. और विवाहिता महिलाएं पति से प्रेम पाने के लिए इस दिन विधि-विधान के साथ व्रत रखती है. 


ईसर-गौर की होती है पूजा 


आज के दिन ईसर देव, यानि भगवान शिव और माता गौरी की पूजा अर्चना की जाती है. गणगौर के व्रत के दिन शुद्ध, साफ मिट्टी से भगवान शिव और माता गौरी की आकृतियां बनाई जाती हैं. इसके बाद इन्हें अच्छे से सजाया जाता है और विधिपूर्वक पूजा की जाती है. 


गणगौर तीज 2022 तिथि



  • कुछ फेस्टिवल उदयातिथि के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं. गणगौर का व्रत भी उदयातिथि के अनुसार रखा जाता है.

  • तृतीया तिथि आरंभ समय: 3 अप्रैल, 2022 रविवार दोपहर 12:38 बजे से 

  • तृतीया तिथि समाप्त समय: 4 अप्रैल, 2022 सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर 

  • उदयातिथि 4 अप्रैल को होने के कारण व्रत भी 4 अप्रैल को ही रखा जाएगा. 


गणगौर तीज की पूजा विधि


गणगौर तीज के दिन भगवान शिव और मां पार्वती ने सभी प्राणियों को सौभाग्य का वरदान दिया था. इसलिए इस दिन सुहागिनें व्रत से पहले मिट्टी से मां पार्वती की स्थापना करती हैं और फिर उनकी पूजा की जाती है. मिट्टी की मां गौरी स्थापित करने के लिए घर के किसी पवित्र कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लंबी वर्गाकार वेदी बनाएं. इस पर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से चौक पूरें. इसके बाद बालू से मां गौरी बनाएं और फिर  सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, महावर, सिन्दूर, रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि अर्पित करें. 


पूजन के समय गौरी जी की व्रत कथा का श्रवण किया जाता है. अक्षत, चंदन, धूप-दीप से मां की पूजा की जाती है. मां पार्वती को सुहाग की वस्तुएं अर्पित की जाती हैं. कथा के बाद मां को अर्पित किए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं. गणगौर की पूजा दोपहर में की जाती है. इसके बाद दिन में एक बार ही भोजन किया जाता है और व्रत का पारण करते हैं. मान्यता है कि गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है. 


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