(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
16 Sanskar: हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में पहला संस्कार है गर्भाधान संस्कार, श्रेष्ठ संतान के लिए बताई गई हैं विधियां
Garbhadhan Sanskar: माता-पिता के रज और वीर्य के संयोग से संतानोत्पत्ति होती है. इस संयोग को गर्भाधान कहा गया है. स्त्री और पुरुष का शीरीरिक मिलन गर्भाधान-संस्कार कहलाता है जोकि 16 संस्कारों में एक है.
Hinduism 16 Sanskar, Garbhadhan Sanskar: हिंदू धर्म में 16 संस्कारों के बारे में बताया गया है, जिसमें किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले संस्कार निहित होते हैं. इन सोलह संस्कारों को हिंदू धर्म में पवित्र संस्कार माना गया है. इसमें सबसे पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार (Garbhadhan Sanskar) कहलाता है.
उत्तम व श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधान संस्कार महत्वपूर्ण होता है. इसमें गर्भस्थापन के बाद कई तरह के प्राकृतिक दोषों के आक्रमण से बचने के संस्कार किए जाते हैं, जिससे कि गर्भ सुरक्षित रहता है और इससे सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है. जानते हैं गर्भाधान के बारे में विस्तार से.
गर्भधान संस्कार क्या है (What is Garbhadhan Sanskar)
गर्भाधान संस्कार सोलह संस्कारों में पहला संस्कार है. इस संस्कार के माध्यम से ही सृष्टि में जीवन की प्रकिया शुरू होती है. इतना ही नहीं गृहस्थ जीवन का प्रथम उद्देश्य और कर्तव्य भी संतानोत्पत्ति को ही माना गया है. लेकिन श्रेष्ठ व योग्य संतान के लिए कुछ नीति-नियम बनाए गए हैं, जिसका उल्लेख हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है. इन नियमों का पालन करते हुए गर्भधारण करने को गर्भधान संस्कार कहा जाता है. गर्भस्थापन के बाद कई तरह के प्राकृतिक दोषों के आक्रमण होते हैं. इससे बचने के लिए और संतान में अच्छे गुणों की उन्नति के लिए गर्भाधान संस्कार किया जाता है, जिससे कि गर्भ सुरक्षित रहता है.
गर्भाधान संस्कार की विधि (Garbhadhan Sanskar Vidhi)
गर्भाधान संस्कार के बारे में स्मृतिसंग्रह में कहा गया है-
निषेकाद् बैजिकं चैनो गार्भिकं चापमृज्यते।
क्षेत्रसंस्कारसिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम्।।
इसका अर्थ होता है कि, विधि-विधान से गर्भाधान करने से सुयोग्य संतान का जन्म होता है. गर्भाधान संस्कार के शुभ फल से शुक्राणुओं से संबंधित पाप या दोष दूर हो जाते हैं और गर्भ सुरक्षित रहता है.
शास्त्रों में गर्भाधान संस्कार के लिए लिखा गया है-
आहाराचारचेष्टाभिर्यादृशोभिः समन्वितौ।
स्त्रीपुंसौ समुपेयातां तयोः पुतोडपि तादृशः।।
इसका अर्थ यह है कि गर्भाधान के समय स्त्री और पुरुष का जैसा आचार-विचार होता है और वे समागम करते हुए जैसी कामना करते हैं संतान में भी स्वाभाविक तौर पर वैसे ही गुण शामिल होते हैं.
कब करना चाहिए गर्भाधान
- शास्त्रों में संतान प्राप्ति के लिए ऋतुकाल को सबसे अच्छा माना गया है. इस समय स्त्री और पुरुष का समागम होना चाहिए.
- स्त्रियों में ऋतुकाल रजो-दर्शन के 16 दिनों तक माना जाता है. इसके शुरूआती 4-5 दिनों समागम नहीं करना चाहिए.
- इसके अलावा 11वें और13वें दिन भी समागम नहीं करना चाहिए. अन्य दिनों में गर्भाधान किया जा सकता है.
- अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्वमासी, अमावस्या आदि जैसे पर्व के रात्रि में भी स्त्री-पुरुष को समागम नहीं करना चाहिए.
- रजो-दर्शन से पांचवी, छठी, सातवीं, आठवीं, नौंवी, दसवीं, बारहवीं, चौदहवीं, पंद्रहवीं और सोलहवीं रात्रि में गर्भाधान संस्कार कर सकते हैं.
- ऋतुस्नान के बाद स्त्री को अपने आदर्श के रूप का दर्शन करना चाहिये. इसका मतलब यह है कि स्त्री जैसी संतान की कामना करती है ऋतुस्नान के बाद उसके चित्र आदि का दर्शन करना चाहिए.
- शास्त्रों में गर्भाधान के लिए रात्रि के तीसरे प्रहर को सबसे श्रेष्ठ माना गया है.
- मलिन अवस्था, मासिक धर्म, ब्रह्म मुहूर्त, दिन के समय, संध्या के समय कभी भी गर्भाधान संस्कार नहीं करना चाहिए. माना जाता है कि, इससे दुराचारी संतान पैदा होती है.
- इसके साथ ही यगि मन कोई चिंता, भय, क्रोध आदि जैसे मनोविकार हों तो भी ऐसी अवस्था में गर्भाधान नहीं करना चाहिए.
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