Garuda Purana, Lord Vishnu Niti: दान-दक्षिणा करना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है. मान्यता है कि दान देने से पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और दान का फल आपको केवल इस जन्म ही नहीं बल्कि कई जन्मों तक भी मिलता है. यहां तक कि मरने के बाद भी दिए गए दान का फल प्राप्त होता है और स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है. वहीं दान-दक्षिणा करने से भगवान भी प्रसन्न होते हैं.


लेकिन स्वयं दरिद्र होते हुए दाता बनना आपको भारी पड़ सकता है. इसलिए दान तभी करें जब आप आर्थिक रूप से दान देने में सक्षम हैं. गरुड़ पुराण के आचारकांड में नीतिसार के अध्याय में सुखी व समृद्ध जीवन के लिए कई कामों के बारे में बताया गया है, इनमें से एक है ‘दान’. इसमें एक श्लोक के माध्यम से दान के महत्व और दान कब करना चाहिए के बारे में बताया गया है. इसे यदि आप अपने जीवन में अपनाएंगे तो कभी भी पैसों की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा. जानते हैं गरुड़ पुराण में वर्णित इस श्लोक के बारे में.



दाता दरिद्रः कृपणोर्थयुक्तः पुत्रोविधेयः कुजनस्य सेवा।
परापकारेषु नरस्य मृत्युः प्रजायते दिश्चरितानि पञ्च।।


गरुड़ पुराण में बताए इस श्लोक का अर्थ है कि, किसी भी व्यक्ति को उस स्थिति में दान नहीं करना चाहिए जब वह खुद दरिद्र हो. दरिद्र होकर दाता बनने से आप कंगाल हो सकते हैं. इसके अलावा दिखावे के लिए दान करने से बचना चाहिए. बल्कि दान उतना ही करें जितना आप सामर्थ्य हों. इससे बढ़ चढ़कर दान करना आपको भारी पड़ सकता है और बाद में परेशानियां झेलनी पड़ सकती है.


शास्त्रो में बताया गया है कि व्यक्ति को अपने अर्जित धन या कमाई का दशांश यानी दस प्रतिशत दान करना चाहिए. साथ ही दान किसी ऐसे व्यक्ति को करें जिसे दान की आवश्यकता हो, तभी दिए हुए दान का पुण्य प्राप्त होता है. अघाए हुए करे कभी दान नहीं करना चाहिए. इसके अलावा सुखी जीवन के लिए गरुड़ पुराण में अन्य बातें भी बताई गई हैं जोकि इस प्रकार हैं-



  • धन होने पर न बनें कंजूस- दरिद्र होने पर दाना न बनें और धन होने पर कंसूजी भी न करें. यदि आप सामर्थ्य हैं तो गरीब व जरूरतमंदों की मदद जरूर करें.

  • संतान को बनाएं संस्कारी- माता-पिता को अपने संतान को हमेशा अच्छे संस्कार देने चाहिए. जो लोग ऐसा नहीं करते, उन्हें समाज में अपमानित होना पड़ सकता है. इसलिए अच्छे कर्म और विचारों के साथ बच्चे का पालन-पोषण करें.

  • स्वयं के लाभ के लिए दूसरों का नुकसान- खुद के लाभ के लिए कभी भी किसी का बुरा न करें. ऐसा करने से आप पाप के भोगी बनते हैं.

  • अधर्मी लोगों की संगति में न रहे- संगति का प्रभाव किसी व्यक्ति पर सबसे अधिक पड़ता है. इसलिए अधर्मी और गलत लोगों के संगत से बचें.


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