Garuda Purana Niti Granth: कहा जाता है कि जीवन-मरण सब ईश्वर द्वारा पहले से ही निर्धारित है. गरुड़ पुराण ग्रंथ से हम सभी अवगत हैं. इसमें जीवन-मरण,पाप-पुण्य और आत्मा के पुनर्जन्म के साथ ही नीति, नियम, ज्ञान, विज्ञान और धर्म से जुड़ी बातें विस्तारपूर्वक बताई गई हैं.


जब आप गरुड़ पुराण ग्रंथ को पढ़ेंगे तो आपको इसमें वर्णित संजीवनी विद्या के बारे में पता चलेगा. गरुड़ पुराण में ‘संजीवनी विद्या’ से मृत व्यक्ति को फिर से जीवित करने की बात कही गई है.कहा जाता है कि गुरु शुक्राचार्य के पास यही विद्या थी, जिससे उन्होंने कई मृत दैत्यों को पुन:जीवित किया था. इसी मंत्र से शुक्राचार्य युद्ध में घायल सैनिकों को भी ठीक कर देते थे.


क्या है यह संजीवनी मंत्र


गरुड़ पुराण में संजीवनी विद्या से जुड़े मंत्र को लेकर कहा गया है, इस मंत्र से मृत व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है. लेकिन मंत्र का सिद्ध होना जरूरी होता है.


सिद्ध करके यदि इस मंत्र को मृत व्यक्ति के कान में बोला जाए तो उसके प्राण पुन: वापस आ जाते हैं. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मंत्र सिद्धि के बाद, दशांश हवन और ब्राह्मण भोज भी कराना जरूरी होता है. यह संजीवनी मंत्र है- यक्षि ओम उं स्वाहा।


इस मंत्र से टल सकती है मृत्यु


‘महामृत्युञ्जय मंत्र’ को भी बहुत असरकारक माना गया है. मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति मरणासन के पड़ाव में रहता है और सारी चिकित्सीय पद्धति भी हाथ टेक दे तो महामृत्युञ्जय मंत्र यदि सिद्ध किया हुआ तो इससे व्यक्ति की मृत्यु टल सकती है. कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युञ्जय मंत्र से ही अपनी मृत्यु को टाला था,जिसके बाद यमराज खाली हाथ लौट गए थे. इसलिए इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा जाता है.


महामृत्युञ्जय मंत्र


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।


मृत्यु, आत्मा और शरीर को लेकर क्या कहते हैं भगवान विष्णु


भगवान विष्णु अपने वाहन पक्षीराज गरुड़ को जो बातें बताई थी, उसी का वर्णन गरुड़ पुराण ग्रंथ में विस्तारपूर्वक किया गया है. गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु कहते हैं, मृत्यु के बाद आत्मा को तुंरत दूसरा शरीर मिल जाता है. लेकिन उसके कर्मों के आधार पर कभी-कभी दूसरा शरीर मिलने में देरी भी होती है.


मृत्यु के बाद आत्मा वायु शरीर धारण करती है और इसके बाद पिंडदान से आत्मा शरीर में बंध जाती है. इसलिए परिजन की मृत्यु पश्चात पिंडदान करने का महत्व है,जिससे आत्मा को भटकने से मुक्ति मिलती है.


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