Gayatri Mantra: शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है. गायत्री मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है. सभी ऋषि और मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुणगान करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि ‘गायत्री छंदसामहम’ अर्थात गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं. आइए जानते हैं गायत्री महामंत्र का अर्थ, जाप करने का समय, विधि और वरदान के बारे में.


गायत्री महामंत्र का अर्थ:


भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात् ।।अर्थात ‘उस प्राणस्वरुप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा का हम ध्यान करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को संमार्ग में प्रेरित करे.  


गायत्री मंत्र के जाप करने का समय:


वेदों और पुराणों में गायत्री महामंत्र का  जाप करने के लिए तीन समय बताए गए हैं. जिसमें से प्रातःकाल का समय जाप का पहला समय होता है. दोपहर का समय जाप करने का दूसरा समय बताया गया है. और जाप करने के तीसरे समय के रूप में शाम का सायंकाल का समय बताया गया है. वैसे गायत्री महामंत्र का जाप कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है बशर्ते ऐसी स्थिति में मौन रहकर व्यक्ति को जाप करना चाहिए.


गायत्री मंत्र का जाप करने की विधि:




  1. घर के मंदिर या किसी साफ जगह पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए जाप करना चाहिए.

  2. गायत्री महामंत्र का जाप स्नान आदि के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर करना चाहिए.

  3. महामंत्र का जाप करते समय आरामदायक मुद्रा में बैठना चाहिए.

  4. महामंत्र का जाप करने के लिए तुलसी या चन्दन की माला का प्रयोग करना चाहिए.

  5. महामंत्र का जाप करते समय जल्दबाजी नहीं करना चाहिए.

  6. महामंत्र का जाप तेज स्वर में नहीं करना चाहिए.


गायत्री महामंत्र के जाप से मिलने वाले वरदान:




  • व्यक्ति के अन्दर उत्साह और सकारात्मकता बढ़ने लगती है.

  • व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यों में लगने लगता है.

  • व्यक्ति को पूर्वाभास भी होने लगता है.

  • व्यक्ति के अन्दर आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ने लगती है.

  • व्यक्ति को स्वप्न सिद्धि की प्राप्ति होने लगती है.

  • व्यक्ति का क्रोध भी शांत होने लगता होता है.

  • व्यक्ति की त्वचा में चमक आने लगती आती है.

  • व्यक्ति का मन बुराइयों से दूर होने लगता है.