Geeta Jayanti 2022 Shlok: गीता जयंती 3 दिसंबर 2022 को है. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है, गीता में समस्त जीवन का सार है. मान्यता है कि गीता में दिए श्लोक व्यक्ति के जीवन को सार्थक और सफल बनाने के लिए कारगर है. कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के जरिए ही धर्म-कर्म का ज्ञान देते हुए अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का काम किया था. गीता के कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं. इनमें से 5 ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं जो व्यक्ति की हर कठिनाओं को दूर कर कामयाबी का रास्ता दिखाते हैं. आइए जानते हैं.


क्रोध पर काबू


लक्ष्य प्राप्ति के लिए क्रोध पर काबू करना अति आवश्यक है. क्रोध के आवेश में व्यक्ति खुद का अहित तो करता ही है इससे दूसरों को भी हानि पहुंच सकती है. गीता में बताया है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है,  भ्रम से सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और फिर मनुष्य खुद का नाश कर बैठता है.


कर्म पर भरोसा


श्रीकृष्ण ने बताया है कि इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्म के अनुरूप फल प्राप्त होता है. कर्म करते हुए फल की चिंता करना व्यर्थ है, क्योंकि इससे भटकाव की स्थिति पैदा होती है. अगर किसी कर्म से सफलता नहीं भी मिलती तो निराश न हों क्योंकि असफलता भी ज्ञान के द्वार खोलती है. जैसे जीत में सुख है तो हार में सीख. जो कर्म पर कम और फल पर ज्यादा ध्यान देते हैं वह दुखी और बेचैन रहते हैं.


मन पर नियंत्रण


मनुष्य मन बड़ा ही चंचल है. किसी चीज को पाने की अभिलाषा में ये आसानी से भटक जाता है. कृष्ण कहते हैं कि अगर जीवन को सफलता की दिशा में ले जाना है तो मन को काबू करना बहुत जरूरी है. वस्तुओं से अधिक लगाव हमारी असफलता का बहुत बड़ा कारण है, क्योंकि जब उसकी पूर्ति नहीं होगी तो गुस्सा आएगा और व्यक्ति लक्ष्य से भटक जाएगा. मन को वश में करने से दिमाग की शक्ति केंद्रित होती है जिससे कार्यों में सफलता मिलने लगती है.


संतुलन है बड़ी ताकत


परिवर्तन संसार का नियम है. गीता के अनुसार मनुष्य को हर परिस्थिति में स्वंय को समान रखना चाहिए. जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है. सुख, दुख, प्रेम ​किसी भी चीज की अति न करें. जैसे सुख आने पर उसका बखान करना और दुख की घड़ी में निराशा में डूबे रहना, दोनों ही हानिकारक है. असंतुलन जिंदगी की गति और दिशा दोनों को बाधित करता है.


खुद का समझें


हर मनुष्य को दूसरों से पहले खुद को जानना बेहद जरूरी है. गीता में कृष्ण कहते हैं कि स्वयं का आकलन करने वाले अपनी खूबियों और कमियों को जानते हैं, इसके बलबूते वह अपने व्यक्तित्व का सही तरीके से निर्माण कर पाता है.


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