ज्योतिष शास्त्र में 9 रत्नों को अहम माना गया है. रत्न शास्त्र में बताया गया है कि ज्योतिष की सलाह के बाद ही रत्न धारण करें. व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों के अशुभ प्रभावों को कम करने और शुभ प्रभावों के असर को बढ़ाने के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है. कहते हैं कि रत्न व्यक्ति के ग्रहों की स्थिति को मजबूत कर शुभ फल प्रदान करने में मदद करते हैं. हर ग्रह के अनुसार ही रत्न धारण किया जाता है. 


रत्न शास्त्र के अनुसार रत्न एक खास तरह की ऊर्जा का स्त्रोत होते हैं. इन्हें धारण करने से शरीर और ग्रहों की ऊर्जा के बीच तालमेल बना रहता है. इसे धारण करने से व्यक्ति पूरी मेहनत के साथ कार्य करता है और उसे अच्छे फल की प्राप्ति होती है. रत्नों को धारण करने के कुछ नियम होते हैं, जिन्हें धारण करते समय ध्यान रखना चाहिए. रत्न को धारण करने से पहले उसके वजन और समय का ख्याल जरूर रखें. 


इस वजन का रत्न पहनें- रत्न शास्त्र के अनुसार रत्न धारण करते समय ग्रहों की स्थिति और आवश्यकता को देखा जाता है. इसके बाद ही रत्नों के वजन का अनुमान लगाया जाता है. इसका वजन ग्रहों के अंश के आधार पर किया जाता है न कि व्यक्ति के वजन के आधार पर. 


इतने समय में बदल दें- रत्नों की ऊर्जा शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती है लेकिन कुछ समय पर इसकी ऊर्जा शरीर में मिल जाती है. फिर वो रत्न शरीर के लिए प्रभावहीन हो जाता है. ऐसी स्थिति में रत्न को या तो बदल लें या फिर रत्नों को दोबारा से ऊर्जावान कर लेना चाहिए. 


कितने समय तक पहनें- रत्न शास्त्र के अनुसार मोती दो वर्षों के बाद प्रभावहीन हो जाता है. वहीं, मूंगा 3-4 साल तक सही काम करता है. इसके साथ ही, माणिक्य 5-7 साल तक ही प्रभावशाली रहता है. रत्न शास्त्र के अनुसार पन्ना करीब 5 साल तक काम करता है. पीला पुखराज, हीरा और नीलम दस साल से भी ज्यादा समय तक प्रभावशाली रहते हैं. गोमेद और लहसुनिया का समय ढाई से तीन साल तक ही होता है. इसके बाद ये प्रभावहीन हो जाता है. 


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