दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है.  गोवर्धन पर्वत की कथा श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है. श्रीकृष्ण ने ही इस पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरू की थी. इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है. इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है.  गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा और सेवा की जाती है. गायों को फूल माला पहनाकर उनकी आरती की जाती है.


इस दिन घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है. गोबर से ही ग्वाल-बाल और गायों, बछड़ों की आकृति भी बनाई जाती है और कृष्ण जी के समक्ष सभी की पूजा अर्चना करते हैं. गाय और बैलों को इस दिन गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.


शास्त्रों में गौ का महत्व
शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा. गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है. देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं.


इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है. गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की.


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