Govardhan Puja 2021: गोवर्धन पूजा कब है? जानें इस पर्व का धार्मिक महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त
Govardhan Puja 2021 Date: दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में इस पूजा का विशेष महत्व माना गया है. पंचांग के अनुसार ये पूजा कब है? जानते हैं.
Govardhan Puja 2021 Date: गोवर्धन पूजा में पशु धन की पूजा की जाती है. इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. गोवर्धन की पूजा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से गोकुल वासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था, जिससे सभी गोकुलवासियों की रक्षा हुई और इंद्रदेव का घमंड भी टूट गया. तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा चली आ रही है.
गोवर्धन पूजा कब है?
पंचांग के अनुसार 05 नवंबर 2021, शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि को प्रात: 02 बजकर 44 मिनट शुरू होगी और रात्रि में 11 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी. गोवर्धन की पूजा 5 नवंबर, को ही मनाया जाएगा.
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन की पूजा प्रात:काल में की जाती है. इस दिन पूजा से पूर्व गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण कर पूजा करनी चाहिए. गोवर्धन पर्वत पर अन्न,खील, लावा, मिष्ठान आदि का भोग लगाना चाहिए.
गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त - प्रात: 06 बजकर 36 मिनट से प्रात: 08 बजकर 47 मिनट तक.
अवधि - 02 घण्टे 11 मिनट्स
द्यूत क्रीड़ा शुक्रवार, नवम्बर 5, 2021 को
गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त - दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से शाम 05 बजकर 33 मिनट तक.
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गोवर्धन कथा
गोवर्धन पूजन से होता है अहंकार का शमन
कार्तिकस्य सिते पक्षे अन्नकूटं समाचरेत्।
गोवर्धनोत्सवं चैव श्री विष्णुः प्रीयतामिति।।
द्वापर युग में जब व्रजवासी देवराज इन्द्र के भय से उनकी छप्पन भोगों द्वारा पूजा किया करते थे, उस समय गोप और ग्वालों को श्री हरि ने इन्द्र पूजा न करके प्रत्यक्ष देव गौ व गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया तथा इन्द्र के भोग को स्वयं गोवर्धन रूप में प्रकट होकर ग्रहण कर लिया. इस घटना से क्रुद्ध होकर इन्द्र ने वज्र से अतिवृष्टि कर दी.
इसी के फलस्वरूप श्री कृष्ण ने अपनी लीला का स्वरूप बढ़ाते हुए स्वयं ही गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर धारण किया और इन्द्र के प्रकोप से, अतिवृष्टि से होने वाली धन-जन की हानी से सम्पूर्ण व्रज क्षेत्र की रक्षा की.
इसके बाद इन्द्र ने श्री कृष्ण की शरण ली और सम्पूर्ण ग्राम में गोविन्द का गुणगान और उत्सव मनाया गया. तभी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन धारी श्री कृष्ण का, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पंचोपचार पूजन किया जाता है। साथ ही गौ माता की भी पूजा की जाती है.
वास्तव में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पूजा स्वयं की पूजा के उद्देश्य से नहीं बल्कि अंहकार और दुराचार की समाप्ति तथा गाय और वन की रक्षा के संरक्षण और संवद्धन के लिए प्रारम्भ की. अंहकार किसी में भी व्याप्त हो सकता है, चाहे वह देव हो या असुर, फिर साधारण मानव की तो बात ही क्या है। इसलिए यह पर्व हमें अहंकार त्याग, प्रकृति प्रेम और दूसरों की सेवा व सहायता करने की शिक्षा देता है.
शास्त्र कहते हैं कि जो कोई भी भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाता है, उसे कई तीर्थों और तपस्याओं को करने से भी सहस्त्र गुणा अधिक पुण्य मिलता है. फिर गिरिराज जी की परिक्रमा करने का तो महात्म्य ही अनन्त फलदायी है.
महाराष्ट्र में यह दिन बली प्रतिपदा या बली पढवा के रूप में मनाया जाता है. ऐसा मना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार बामन ने बली को हराया था और उसे पाताल लोक भेजा था. भगवान बामन के वरदान स्वरूप बली इस दिन पृथ्वी लोक पर आते हैं.
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