Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या बली प्रतिपदा भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है. महाराष्ट्र और गुजरात में व्यापारी समुदाय इस दिन को नए वर्ष के रूप में मनाते हैं. स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन आरती करके वस्त्र और आभूषणों से सुशोभित होकर कथा, दान आदि करना चाहिए. स्त्री और पुरुष दोनों को तिल का तेल लगाकर स्नान करना चाहिए. इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और गायों को सजाया जाता है.
गोवर्धन पूजा के समय की जाने वाली प्रार्थना इस प्रकार है-
गोवर्द्धनधराधार गोकुलत्राणकारक.
विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव॥
या लक्ष्मीर्लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता.
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु॥
अग्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः.
गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
इस दिन अन्नकूट और चिरैया गौर भी मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश में चिरैया गौर पारिवारिक प्रेम, वैभव और पति के दीर्घजीवन की कामना का पर्व है जिसे विवाहित महिलाएं बड़े प्रेम से करती हैं. अन्नकूट के उत्सव का रहस्य यह है कि प्राचीन काल में लोग भगवान इन्द्र की पूजा करते थे और उन्हें भोग लगाने के लिए तरह-तरह के पकवान और मिठाइयाँ बनाते थे. अब यह परंपरा गोवर्धन की पूजा के रूप में मनाई जाती है. प्रतिपदा के दिवस अन्नकूट मनाने की भी परम्परा है.
सनत कुमार संहिता अनुसार –
कार्तिकस्य सिते पक्षे, अन्नकूटं समाचरेत् . गोवर्धनोत्सवचै श्री विष्णुः प्रियतामिति ॥
पुरातन काल में लोग भगवान इन्द्र की पूजा करते थे और उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान और मिठाइयाँ बनाते थे. भगवान इन्द्र इन भोगों को स्वीकार कर प्रसन्न होते थे और लोगों का कल्याण करते थे. हालांकि, अब इन्द्र की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा की जाती है, लेकिन अन्नकूट की प्राचीन परंपरा आज भी जारी है. अन्नकूट उत्सव का यही रहस्य है.
व्रत चंद्रिका उत्सव के अध्याय 27 के अनुसार, एक बार बालखिल्य नामक महर्षि ने अन्य ऋषियों से कहा कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट करके गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हों. ऋषियों ने पूछा कि गोवर्धन कौन है और उसकी पूजा का फल क्या है? बालखिल्य ने बताया कि एक समय श्रीकृष्ण अपने सखा ग्वालों के साथ गायें चरा रहे थे और गोवर्धन पर्वत की घाटी में पहुँच गए. वहाँ ग्वालों ने भोजन के बाद लकड़ी इकट्ठा कर एक मंडप बनाना शुरू कर दिया. श्रीकृष्ण ने पूछा कि किस देवता का महोत्सव है. ग्वालों ने बताया कि आज व्रज में बड़ा उत्सव है और घर-घर पकवान बन रहे हैं. कृष्ण ने पूछा कि क्या यह किसी प्रत्यक्ष देवता का उत्सव है जो स्वयं आकर भोग ग्रहण नहीं कर सकता. ग्वालों ने उत्तर दिया कि यह इन्द्रोज यज्ञ है, जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक करता है, उसके देश में अतिवृष्टि और अनावृष्टि नहीं होती और प्रजा सुखपूर्वक रहती है.
श्रीकृष्ण ने कहा कि गोवर्धन पर्वत की पूजा मथुरा और गोकुल के लोगों ने की है और यह हमारा हितकर्ता भी है. इसलिए मैं गोवर्धन की पूजा करना अधिक उचित समझता हूँ. कृष्ण की बात का सभी ग्वालों ने समर्थन किया. माता यशोदा की प्रेरणा से नन्द ने गोप-ग्वालों की सभा की और कृष्ण से पूछा कि गोवर्धन की पूजा करने से क्या लाभ होगा. कृष्ण ने कहा कि कर्म के अनुसार ही सब कार्य होते हैं. हम गोप हैं और हमारी आजीविका का संबंध गोवर्धन पर्वत से है, इसलिए इसकी पूजा आवश्यक है. कृष्ण के वचन सुनकर सभी ग्वालों ने इन्द्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी. श्रीकृष्ण ने अपने दैविक रूप से पर्वत में प्रवेश किया और ब्रजवासियों द्वारा चढ़ाए गए सभी पदार्थों का भक्षण किया.
जब व्रजवासी गोवर्धन की पूजा कर रहे थे, नारद जी वहाँ पहुँचे और इन्द्र से सब समाचार कह सुनाया. इन्द्र क्रोधित होकर मूसलधार वर्षा करने लगे. ब्रज की जनता व्याकुल हो गई और उन्होंने कृष्ण से सहायता मांगी. कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया और सभी ब्रजवासियों को पर्वत के नीचे स्थान दिया. इन्द्र ने कृष्ण से क्षमा मांगी और इस प्रकार गोवर्धन पूजा का प्रचार हुआ.
आज के समय में ब्रजमंडल में गोवर्धन में अन्नकूट का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. काशी में अन्नपूर्णा के मंदिर में मिठाई और भात के पहाड़ बनाए जाते हैं और छप्पन प्रकार के पकवानों का भोग लगाया जाता है. हालांकि, अब न तो इन्द्र की पूजा होती है और न ही गोवर्धन की, केवल मिठाई का गोवर्धन बनाकर उसकी आकृति की नकल की जाती है.