Goverdhan Puja in Mathura- मथुरा और वृन्दावन को श्रीकृष्ण की लीलाओं का धाम माना जाता है. यही कारण है कि ब्रज में ठाकुर जी की लीलाओं को उनके सभी त्योहारों को बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. चाहे वो जन्माष्टमी का त्यौहार हो चाहे वो गोवेर्धन पूजा का हो, हर त्यौहार पर यहाँ की रौनक अलग रहती है और देश विदेश के काफी भक्त ऐसे मौकों पर मथुरा और वृन्दावन आकर ठाकुर जी का दर्शन करते हैं और उनकी लीलाओ का आनद लेते हैं.


ब्रज की समस्त नगरी को इस तरीके से सजाया जाता है मानो कि भगवान स्वयं यहाँ आकर अपनी लीला करने वाले हो. आज हम बात करने वाले है मथुरा में आयोजित होने वाले भव्य गोवेर्धन पूजा के कार्यक्रम के बारे में. 


दिवाली के अगले दिन गोवेर्धन पूजा समस्त भारतवर्ष में मनाई जाती है. गोवर्धन पूजा, कार्तिक महीने में हर साल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है. इस साल यह पर्व 14 नवंबर को मनाया जा रहा है. यह पर्व दीपावली के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा में गोवर्धन भगवान की पूजा की जाती है. मान्यता है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी उंगली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और प्राणियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था. तब से ब्रज में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाने लगा और अब गोवेर्धन पूजा पूरे देश में उत्सव की तरह मनाई जाती है. 


इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन, और गायों की पूजा का विशेष महत्व होता है. गोवर्धन पूजा पर सभी लोग गोबर से अपने- अपने घरों में गोवेर्धन महाराज बनाते है या फिर गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं. इस दिन घरों में अन्नकूट का भोग बनाया जाता है. गोवर्धन पूजा में कथा पढ़ने का खास महत्व होता है. समस्त ब्रज मंडल में गोवेर्धन पूजा को त्यौहार की तरह मनाया जाता है, लेकिन मथुरा के महाविद्या कॉलोनी में पिछले 25 वर्षों से गोवेर्धन पूजा के भव्य कार्यक्रम का आयोजन होता आ रहा है. 


मथुरा की इस कॉलोनी में एक या दो फ़ीट के नहीं बल्कि पूरे 51 फ़ीट के गोवेर्धन महारज बनाये जाते हैं और भगवान को 56 प्रकार का भोग भी चढ़ाया जाता है. साथ ही यहाँ एक भव्य मंच तैयार किया जाता है, जहाँ पर विभिन्न स्थानों से आए कलाकार अपनी प्रस्तुति से भगवान के आगे अपनी हाज़री लगाते हैं. पूरी कॉलोनी को सजाया जाता है साथ ही कॉलोनी वासी दर्शन करने के लिए आने वाले परदेसियों के लिए बैठने और 56 भोग के प्रसाद को ग्रहण करने का इंतज़ाम करते है.


इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण तो 51 फ़ीट के भव्य गोवेर्धन महाराज ही रहते है क्योंकि पूरे ब्रज मंडल में कहीं और इतने भव्य गोवेर्धन महाराज का निर्माण नहीं कराया जाता है. लेकिन कॉलोनी कमिटी द्वारा बाहर से बुलवाये गए कलाकार भी कार्यक्रम में खूब रंग भरते है. कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार की झाकियां भी दिखाई जाती है और प्रभु की लीलाओ के बारे में भी लोगों को अवगत किया जाता है. कार्यक्रम की शुरुआत गणेश जी को मनाकर की जाती है, फिर सभी भगवानों की झाकियां निकाली जाती है जिनमे मुख्य महाविद्या देवी, गलतेश्वर महादेव, तुलसी वन और मानसी गंगा की रहती है. कार्यक्रम में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को भी दिखाया जाता है और भगवान के राधा और गोपियों के साथ रास की लीलाओं का भी झाकियों के माध्यम से खूबसूरत वर्णन दिया जाता है. 


क्योंकि ब्रज में होली का भी एक अलग महत्व है और 15 दिन पहले से ही होली के कार्यक्रम ब्रज के सभी मंदिरो में प्रारम्भ हो जाते है इसलिए कार्यक्रम के एक अंश में भक्तों को भगवान के साथ फूलों की होली खेलना का अवसर प्रदान किया जाता है. गोवेर्धन महाराज की महाआरती के साथ इस भव्य कार्यक्रम का समापन किया जाता है.  


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