Mohini Ekadashi 2023 Related to Solar and Lunar Eclipse: हर साल कई ग्रहण लगते हैं. इसमें सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर चांद और सूरज को ग्रहण क्यों लग जाता है. वैज्ञानिक तौर पर इसके कारण बताए गए हैं. लेकिन ग्रहण लगने का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से भी जुड़ा है.


इस एकादशी का है ग्रहण से संबंध


हर महीने दो एकादशी तिथि (शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष) पड़ती है. इस तरह से पूरे साल 24 और अधिकमास होने पर कुछ 26 एकादशी तिथि पड़ती है. इन सभी एकादशी तिथि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और सभी का अपना विशेष महत्व भी होता है. पूरे साल में पड़ने वाली सभी एकादशी का व्रत और पूजन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. लेकिन सभी एकादशी में एक एकादशी ऐसी होती है, जिसका संबंध ग्रहण से होता है. जी हां, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था. इसलिए इसे मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह भगवान विष्णु का एकमात्र ऐसा अवतार है, जिसमें उन्होंने स्त्री रूप धारण किया. लेकिन मोहिनी एकादशी का ग्रहण लगने से क्या संबंध है, आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.



जब भगवान विष्णु ने लिया मोहिनी अवतार


जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो समुद्र से 14 बहुमूल्य रत्न निकले, जिसे देवताओं और असुरों ने सर्वसम्मति से बांट लिया गया. लेकिन इसमें अमृत कलश भी निकला. अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद छिड़ गया. तब भगवान विष्णु को एक सुंदर स्त्री के रूप में मोहिनी अवतार लेना पड़ा. कहा जाता है कि भगवान विष्णु का ये अवतार अत्यंत कामुक और सुंदर था. मोहिनी को देख असुरों की आंखें भी उनपर टिकी रह गई और असुर उसपर मोहित हो गए. मोहिनी ने देवताओं और असुरों से विवाद को सुलझाने की गुजारिश की और इस तरह से असुरों ने अमृत कलश मोहिनी को दे दिया. मोहिनी ने कहा कि वह अमृत को देवताओं और असुरों के बीच बराबर में वितरित करेगी. इस तरह से देवता ओर असुर सभी अलग-अलग पंक्ति में बैठ गए. मोहिनी देवताओं को अमृत कलश से अमृत पिलाने लगी और असुरों को अमृत देने का नाटक करती रही. इधर असुर मोहिनी के रंग-रूप को देखकर मोहित थे और उन्हें लग रहा था वे अमृत पी रहे हैं.


जब देवताओं की पंक्ति में बैठ गया असुर


देवताओं की पंक्ति में छल से एक असुर बैठ गया और अमृत पान करने लगा. लेकिन सूर्य और चंद्र की नजर उसपर पड़ गई और उन्होंने उसे पहचान लिया. सूर्य और चंद्र ने भगवान विष्णु को उस असुर के बारे में बताया दिया.


इस कारण लगता है सूर्य और चंद्र को ग्रहण


भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर अपने सुदर्शन च्रक से उस असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन असुर अमृत पान कर चुका था, इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई. इसी असुर के सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाया. सूर्य और चंद्र ने उस असुर का भेद उजागर किया था. इस कारण राहु-केतु, सूर्य और चंद्रमा से द्वेष रखता है और बदला लेने के लिए अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा को ग्रास (निकलने) करने आते हैं, जिस कारण ही ग्रहण लगता है.


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