नई दिल्ली: करतारपुर कॉरिडोर के खोले जाने के फैसले से सिख समुदाय के लोग काफी खुश हैं. गुरू नानकदेवजी की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने की घोषणा सिख श्रद्धालुओं के लिए बड़ी अहम है. इससे सिख श्रद्धालुओं को काफी लाभ होगा. कॉरिडोर खोले जाने से वह बिना किसी रुकावट और बिना किसी वीजा के गुरुद्वारे में जा सकेंगे. इस कॉरिडोर को खोलने को लेकर काफी लंबे अर्से से मांग उठ रही थी. ऐसे में आइए जानते हैं सिखों के लिए करतारपुर गुरुद्वारा साहिब की क्या है धार्मिक अहमियत?


करतारपुर गुरुद्वारा साहिब की क्या है धार्मिक अहमियत


करतारपुर कॉरिडोर खुल जाने से सिख श्रद्धालुओं को ज्यादा परेशानी नहीं होगी. वह उन्हें भारत-पाकिस्तान सीमा पर एक स्लिप दी जाएगी और वह करतारपुर गुरुद्वारा साहिब में जाकर मत्था टेक सकते हैं. उन्हें शाम तक वापस लौटना होगा. दरसअल इस जगह की अहमियत सिखों में इसलिए है क्योंकि यह नानक साहिब का निवास स्थान है. सिखों के प्रथम गुरू नानक देवजी का निवास स्थान होने की वजह से यह स्थान सिखों के लिए सबसे पावन स्थानों में से एक है. नानाक देवजी यहीं रहे और फिर इसी जगह से ज्योति में समा गए. बाद में उन की याद में यहां गुरुद्वारा खोला गया.


यहां ये बता दें कि अब तक भारतीय सिख इस स्थान का दर्शन दूरबीनों से ही करते थे. करतारपुर पाकिस्तान में है. पाकिस्तान के नारेवाल जिले में स्थित है. इस जगह की भारतीय सीमा से दूरी की बात करें तो इसकी दूरी महज तीन किलो मीटर है.


ऐसी मान्यता है कि गुरू नानकदेवजी अपनी यात्रा पूरी करने के बाद यहीं आए और रहने लगे.उन्होंने अपने अंतिम 17 साल यहीं गुजारे थे. इस दौरान करतारपुर में नानकदेवजी का पूरा परिवार रहता था. कहा जाता है कि उन्होंने इसी जगह से ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ (नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं) का उपदेश दिया.


इतना ही नहीं मान्यता यह भी है कि सिख समुदाय के दूसरे गुरु अंगद देव जी को भी गुरू की गद्दी यहीं सौंपी गई थी. गुरू नानक देवजी ने फिर समाधि यहीं ली थी. सिख समदाय के लोगों में लंगर का काफी महत्व है. माना जाता है कि पहले लंगर की शुरुआत भी करतारपुर से ही हुई थी. इस तरह देखें तो करतारपुर गुरुद्वारा साहिब की सिख समुदाय के लोगों के लिए काफी धार्मिक अहमीयत है.


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