नई दिल्ली: सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु का नाम नानक देव है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन उनका जन्म दिन हुआ था. उनके जन्म दिन को सिख लोग बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा से मनाते हैं. इस बार उनकी 550वीं जयंती आज यानी 12 नवंबर को है.
बचपन में कैसे थे गुरुनानक देव
गुरुनानक देव का झुकाव बचपन से आध्यात्म की तरफ था. सांसरिक कामों से दूरी बनाते हुए उन्होंने अपना रुख ईश्वर और सत्संग की तरफ मोड़ लिया. ईश्वर की तलाश की खातिर उन्होंने 8 साल की आयु में स्कूल भी छोड़ दिया. ईश्वर के प्रति उनके समर्पण को देख लोग उन्हें दिव्य पुरुष मानने लगे.
कैसे मनाई जाती है गुरु नानक जयंती?
इस दिन गुरुद्वारों में शब्द-कीर्तन के साथ जगह-जगह लंगर का आयोजन होता है. घरों में सिख गुरुबाणी का पाठ कर गुरुनानक देव को याद करते हैं. जुलूस एवं शोभा यात्रा के माध्यम से उनका संदेश लोगों तक पहुंचाया जाता है. जुलूस में हाथी, घोड़ों के साथ नानकदेव की जीवन से संबंधित झांकियां भी धूमधाम के साथ निकाली जाती हैं. सिखों की धार्मिक किताब श्री गुरुग्रंथ साहिब को फूलों की पालकी से सजे वाहन पर गुरुद्वारा ले जाया जाता है.
जानिए- गुरु नानक देव की शिक्षाओं को
गुरु नानक देव की शिक्षाएं एक ईश्वर की उपासना की तरफ बुलाती हैं. उनके नजदीक न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान बल्कि ईश्वर की नजर में सभी समान हैं. उनका संदेश है कि पहले खुद में भरोसा पैदा करो तब जाकर ईश्वर में भरोसा पैदा हो सकता है. गुरुनानक खुद को जाति- बंधन से ऊपर मानते हैं. एकेश्वरवाद, समानता, बंधुत्व उनकी शिक्षा के प्रमुख सार हैं.
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रमुख समर्थक
उनकी शिक्षा के मुताबिक इंसानों और ईश्वर के नजदीक गुरु और सिख का रिश्ता है. जिसका मतलब है मार्गदर्शक और पैरोकार. जिस वक्त गुरुनानक ने अपने संदेश का प्रचार करना शुरू किया, उस वक्त धर्म के ठेकेदारों का धंधा खूब फल-फूल रहा था. जिसका उन्होंने विरोध किया. उन्होंने चारों तरफ फैले अंधविश्वास को अपनी शिक्षा से दूर किया. उनका कहना था कि जो शख्स मेहनत से ना कमाए, उसे खाने का भी हक नहीं है. गुरु नानक ने दुनिया को अमन, शांति, भाईचारे का संदेश दिया. मानव सेवा को उन्होंने सबसे बड़ी इबादत बताई.
उन्होंने दूसरे धर्मों की अच्छी शिक्षा को अपनाया.
उनके जीवन की शुरुआत मस्जिद में शिक्षा ग्रहण करने के साथ होती है. फिर नवाब दौलत खां लोधी के साथ रहे. उनकी नजर में हिंदू-मुसलमान सब बराबर थे. धर्म की दीवार से ऊपर उठकर गुरुनानक मानवता का सबक देते थे. सद्भावना के तौर पर उन्होंने मुसलमानों के पवित्र स्थल मक्का-मदीना की जियारत की. गुरुनानक देव ने ईराक, ईरान में रहकर भी वहां के बारे में बहुत कुछा जाना.