Guru Nanak Jayanti 2022: गुरु नानक जी की इन 3 बड़ी सीख में छिपा है तरक्की का रास्ता, जीवन में बनी रहती है सुख-शांति
Guru Nanak Jayanti 2022: गुरु नानक जी का जन्मोत्सव 8 नवंबर 2022 को मनाया जाएगा. गुरु नानक देव जी की 3 बड़ी सीख व्यक्ति के कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं. आइए जानते हैं.
Guru Nanak Jayanti 2022: गुरु नानक जी का जन्मोत्सव 8 नवंबर 2022 को मनाया जाएगा. सिखों को पहले गुरु माने जाने वाले नानक देव ने खुशहाल जीवन जीने के 3 अचूक मंत्र दिए हैं जिनका अनुसरण करने वाले संकट की घड़ी में भी परेशान नहीं होते और सतकर्म से सफलता प्राप्त करते हैं. व्यक्ति अपने कर्म से ही धन, मान-सम्मान और सुखी जीवन जी पाता है. गुरु नानक देव जी की ये 3 बड़ी सीखें भी व्यक्ति के कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं. आइए जानते हैं.
गुरु नानक जी की 3 बड़ी सीख (Guru Nanak Ji three Big lessons)
नाम जपो
ईश्वर चारों ओर स्थित है फिर चाहे वो मानव हो, दिशा हो या फिर पेड़-पौधे. प्रभु के स्मरण मात्र से जीवन तर जाता है. गुरु नानक जी कहते हैं कि धर्म का मार्ग ही जीवन में सफलता दिलाता है. इसके लिए ईश्वर की भक्ति यानी की प्रभू का नाम जपने से तमाम परेशानियों का निवारण हो जाता है. जप से मन एकाग्र होता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है. नानक जी ने प्रभू का नाम जपने के दो तरीके बताए हैं पहला संगत(पवित्र संतों की मंडली) में रहकर जप किया जाए, दूसरा एकांत में जप करना.
ईमानदारी से काम
ईमानदारी से कर्म करने वाला सदा तरक्की के मार्ग पर प्रशस्त होता है. नानक देव जी ने कहा है कि सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालिवतार।’ कहने का अर्थ है सोचने मात्र से समाधान नहीं निकलता यानी की जब तक ईमानदारी से मेहनत न करो तब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता. उसी प्रकार शारीरिक रूप से चुप हो जाने से चुप नहीं हुआ जा सकता है. सफलता के लिए आंतरिक शान्ति और ठहराव बहुत जरूरी है. नानक जी कहते हैं कि सच्चा साधक वही है जो अच्छे काम करता हुआ ईश्वर को हमेशा याद रखता है.
दान करो
दान ही सबसे बड़ा धर्म है. गुरु नानक जी कहते हैं कि जिसमें त्याग की भावना, विश्वास की ताकत होती है उसके जीवन में कभी दुख नहीं आता. एक कहानी के अनुसार एक बार गुरु नानक जी दो बेटों और लेहना (गुरु अंगद देव) के साथ थे. उनके सामने एक शव ढंका था, नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा. बेटे तो मौन रहे लेकिन लेहना ने उसे खाने की बात स्वीकार कर ली क्योंकि उन्हें गुरु पर विश्वास था. जब कपड़ा हटाया तो वहां पवित्र भोजन मिला. लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया. सिख समुदाय के लोग इसी आधार पर अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान धर्म के लिए निकालते हैं जिसे दसवंध कहते हैं. इसी से लंगर चलता है.
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