Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा पर्व 3 जुलाई को मनाया जाएगा, जानें मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और महत्व
Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा का महापर्व सोमवार 03 जुलाई 2023 को मनाया जाएगा. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास से जानें गुरु पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान, गुरुओं की पूजा और दान का महत्व.
Guru Purnima 2023: हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है. इनकी पूजा का दिन होता है गुरु पूर्णिमा, जो हर साल आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल गुरु पूर्णिमा का महापर्व सोमवार 03 जुलाई 2023 (Guru Purnima 2023 date) को मनाया जाएगा. इस दिन अनेक मठों एवं मंदिरों पर गुरुओं की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा से ही वर्षा ऋतु का आरंभ होता है और आषाढ़ मास की समाप्ति होती है. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास से जानें गुरु पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान, गुरुओं की पूजा और दान का महत्व.
गुरु पूर्णिमा 2023 तिथि और मुहूर्त (Guru Purnima 2023 Tithi)
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि 02 जुलाई 2023 को सायंकाल 08:21 बजे से प्रारंभ होकर 03 जुलाई 2023 को सायंकाल 05:08 बजे तक रहेगी. ऐसे में उदया तिथि के आधार पर गुरु पूजन का महापर्व 03 जुलाई 2023 को मनाया जाएगा. इस दिन अपने गुरु की पूजा करने पर व्यक्ति को उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.
इसलिए मनाते हैं गुरु पूर्णिमा का पर्व
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है. गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है. महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था. उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था. अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है.
कैसे मनाया जाता है गुरु पूर्णिमा पर्व
गुरु पूर्णिमा पर लोग अपने गुरुओं को उपहार देते हैं और उनका आर्शीवाद लेते हैं। जिन लोगों के गुरु अब इस दुनिया में नहीं रहे वे लोग भी गुरुओं की चरण पादुका का पूजन करते हैं. माना जाता है कि इस दिन गुरुओं का आर्शीवाद लेने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में गुरु को परम पूजनीय माना गया है. गुरु पूर्णिमा पर्व गुरुजनों को समर्पित है. शिष्य अपने गुरु देव का पूजन करेंगे. वहीं जिनके गुरु नहीं है वे अपना नया गुरु बनाएंगे. पुराणों में कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा के समान है और मनुष्य योनि में किसी एक विशेष व्यक्ति को गुरु बनाना बेहद जरुरी है. क्योंकि गुरु अपने शिष्य का सृजन करते हुए उन्हें सही राह दिखाता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने ब्रह्मलीन गुरु के चरण एवं चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं.
गुरु का अर्थ
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक. गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है. प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे.
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है. धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता, इसलिए जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है. सनातन धर्म में गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग स्वरूपों में किया गया है. इसी कड़ी में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है.
गुरु के बिना जीवन है अधूरा
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निशुल्क शिक्षा ग्रहण करने जाते थे, तो इसी दिन वे श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पित करते थे. गुरु के बिना ज्ञान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. गुरु की कृपा से सब संभव हो जाता है. गुरु व्यक्ति को किसी भी विपरित परिस्थितियों से बाहर निकाल सकते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं का पूजन किया जाता है. गुरु की हमारे जीवन में महत्व को समझाने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है.
वेद व्यास के शिष्यों ने शुरु की थी यह परंपरा
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया कि इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की. पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे. जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं. कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं.
गुरु वेद व्यास जी की पूजा का महत्व
ज्योतिषाचार्य डा. व्यास ने बताया है कि गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” यानि एक गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है. गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. वेदव्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे. शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है. महार्षि वेद व्यास के नाम के पीछे भी एक कहानी है। माना जाता है कि महार्षि व्यास ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बांटकर उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा. वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए.
गुरु के महत्व को बताते हुए संत कबीर का एक दोहा बड़ा ही प्रसिद्ध है। जो इस प्रकार है -
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है -
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
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