Guru Purnima 2024 Doha: हिंदू धर्म (Hindu Dharna) में गुरु पूर्णिमा का दिन बहुत खास होता है. पंचांग के अनुसार यह तिथि आषाढ़ पूर्णिमा (Ashadha Purnima 2024) होती है. मान्यता है कि इस दिन हिंदू धर्मग्रंथ महाभारत (Mahabharat) के रचयिता महर्षि वेद व्यास का भी जन्म हुआ था. वेद व्यास (Ved Vyas) जी ने चारों वेदों का ज्ञान भी दिया और पुराणों की रचना की. इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima 2024) के नाम से भी जाना जाता है.


इस वर्ष गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व रविवार, 21 जुलाई 2024 को मनाया जाएगा. वैसे तो गुरु की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है, क्योंकि गुरु सूर्य (Surya) के प्रकाश के समान है और गुरु की महिमा का वर्णन करना सूर्य के समक्ष दीप दिखाने जैसा होगा. गुरु ही हमारे शिक्षा, ज्ञान और जीवन का आधार है. गुरु के बिना सफल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.


शास्त्रों (Shastra) में गुरु शब्द का अर्थ बताया गया है. गुरु दो अक्षरों से मिलकर बना है. 'गु' का अर्थ 'अंधकार' से है और 'रु' का अर्थ उसे हटाने वाले से. यानी अंधकार के अज्ञानता से हटाकर जो ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाए वही सच्चा गुरु है.


संत कबीर दास (Sant Kabir das) भी अपने कई दोहे में गुरु की महिमा का बखान करते हैं. गुरुओं पर आधारित कबीर दास से ये दोहे खूब प्रचलित हैं. अपने दोहे में कबीर गुरु को ईश्वर और माता-पिता से भी श्रेष्ठ बताते हैं. गुरु पूर्णिमा पर जानते हैं गुरुओं पर आधारित संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das Ke Dohe in Hindi)-   


सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय


अर्थ: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम और सातों समुद्रों को यदि स्याही बनाकर लिखा जाए तो गुरु के गुण नहीं लिखना संभव नहीं है.


गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥

अर्थ: गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, ये बात सभी जानते हैं. पारस लोहे को सोना बनाता है. लेकिन गुरु अपने शिष्य को महान बना देता है.


गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं


अर्थ: गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो. उन्हीं की सेवा-पूजा करो फिर सब अंधकार खुद ही मिट जाएगा.


गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय। 
बलिहारी गुरु आपणै, गोविन्द दियो बताय।।


अर्थ: गुरु के समान जीवन में कोई भी हितैषी नहीं. गुरु ही ईश्वर का ज्ञान देते. जिस व्यक्ति को गुरु की कृपा मिल जाए वह पल भर इंसान से देवता बन जाता है.


कबीरा ते नर अन्ध है गुरु को कहते और 
हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रुठै नहीं ठौर


अर्थ: हरि (भगवान) के रूठ जाने पर तो गुरु की शरण में जाया जा सकता है. लेकिन अगर किसी कारण गुरु रूठ जाए तो फिर कहीं शरण नहीं मिलती. 


गुरु की आज्ञा आवैगुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैंआवागमन नशाय॥


अर्थ: व्यवहार में साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना-जाना चाहिए. क्योंकि संत वही है जो जन्म और मरण से परे होकर साधना करते हैं.


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