Guru Purnima : सनातन धर्म में गुरु की महिमा माता-पिता के बाद सर्वोत्तम मानी गई है. आदिगुरु वेदव्यास की जयंती यानी आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और मुडिया पूनो कहा जाता है. माना जाता है कि जब पाप-अज्ञानता रूपी अंधेरा पूरी धरा और व्यक्ति को लगभग अंधा कर देता है तो गुरु चंद्रमा के रूप में उन्हें प्रकाश देते हुए सत्य का मार्ग दिखाते हैं. मगर इसका वर्षा ऋतु से खास संबंध है.
गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में ही मनाने की खास वजह यह है कि इस समय वातावरण में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी. यह समय अध्ययन और अध्यापन और ज्ञान अर्जन के लिए पूरी तरह अनुकूल है. एकाग्रता बढ़ाने के साथ स्मरण शक्ति तीक्ष्ण होती है. यही वजह है कि शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने के लिए यही समय चुनते हैं. गुरु से मंत्र पाने के लिए यह दिन सबसे अच्छा माना जाता है.
देश में ऐसे होती है गुरु पूर्णिमा
बंगाल में साधु इस दिन सिर मुंडाकर परिक्रमा के लिए जाते हैं तो ब्रज क्षेत्र में इसे मुड़िया पूनो नाम से मनाया जाता है, इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं. एमपी के खंडवा में धूनी वाले बाबा की समाधि और उत्तराखंड के भवाली में बाबा नीम करौली के आश्रम में श्रद्धालुओं की खूब भीड़ उमड़ती है.
- माता-पिता के आशीर्वाद से करें दिन की शुरुआत
- गुरु पूर्णिमा के दिन की शुरुआत जीवन के प्रथम गुरु माता-पिता के आशीर्वाद से करनी चाहिए.
- विद्यालयों और संस्थानों में छात्र गुरुजनों को सम्मान उपहार देकर आशीष प्राप्त करते हैं.
- कई लोग अपने ईष्ट देव की आराधना कर अपने गुरु से आशीर्वाद मांगते हैं.
- इस दिन भगवान वेद व्यास की पूजा कर हलवा प्रसाद बांटा जाना चाहिए.
- संभव हो तो इस दिन किसी गरीब को भरपेट भोजन जरूरत कराना चाहिए.
- गुरु ध्यान या दर्शन करें. उनसे मिलना संभव न हो तो मन से प्रणाम करें.
धर्मग्रन्थों की पूजा भी शुभफलदायक
माना जाता है कि धर्मग्रंथ भी साक्षात् गुरु हैं. पूर्णिमा के दिन वेद व्यासजी के ग्रन्थों को पढ़कर जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए. रामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता पर पुष्प चढ़ाएं और इनका पाठ करें.
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