Guru Tegh Bahadur Jayanti 2024: धर्म को बचाने, हिंदूओं की रक्षा की खातिर भारत में कई महान पुरुषों ने अपना जीनव और प्राण न्यौछावर कर दिए, इन्हीं में से एक थे सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी.


ये भारत (India) के वो क्रांतिकारी पुरुष थे जिन्होंने धर्म, संस्कृति और मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी.


गुरु तेग बहादुर जी (Guru Tegh Bahadur) उस समय धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक थे, जब लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था. हर साल 21 अप्रैल को गुरु तेग बहादुर की जयंती मनाई जाती है.


आइए जानते हैं कौन थे गुरु तेग बहादुर,समाज में क्या है इनका योगदान. वीरता का जलवा दिखाने के बाद त्याग मल को तेग बाहदुर के नाम से पुकारा जाने लगा.


कौन थे गुरु तेग बहादुर ? (Who is Guru Tegh Bahadur)



  • 21 अप्रैल 1621 को बैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब और माता नानकी के घर एक वीर बालक जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया त्याग मल (तेग बहादुर).

  • कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर बाल्यावस्था से ही निडर और धर्म में रूचि रखने वाले थे. मानवता, इंसानियत को वे किसी भी जाति-धर्म से ऊपर रखते थे

  • 1632 में गुरु तेग बहादुर की शादी जालंधर के नजदीक करतारपुर में बीबी गुजरी से हुई. इसके बाद वे अमृतसर के पास बकाला में रहने लगे. सिखों के आठवें गुरु के देहांत के बाद गुरू तेग बहादुर जी 1665 से 1675 तक गुरू की गद्दी संभाली.


त्यागमल से बने तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur History)


गुरु हरगोबिंद साहिब करतारपुर में मुगलों (Mughal) के साथ हुई लड़ाई के बाद जब किरतपुर जा रहे थे, तब फगवाड़ा के पास पलाही गांव में मुग़लों के फौज की एक टुकड़ी ने उनका पीछा करते हुए अचानक उन पर हमला कर दिया.


इस युद्ध में त्याग मल के युद्धकौशल को देखकर मुगल सेना मैदान छोड़कर भाग गई और सिख सैनिक विजयी हुए. 


मात्र 14 साल की उम्र में पिता के साथ मुगलों के खिलाफ त्याग मल ने ऐसी बहादुरी दिखाई कि हर कोई उनसे प्रभावित हुआ, इसके बाद वह तेग बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुए.


औरंगजेब के आगे नहीं झुकाया सिर


गुरु तेग बहादुर के समय औरंगजेब (Aurangzeb) का शासन था, सिख इतिहास (Sikh History) की किताब में दावा किया गया है कि औरंगजेब के शासनकाल में जबरन हिंदूओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था.


कई कश्मीरी पंडित इसका शिकार हुए, इसके बाद उन्होंने गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण ली. धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर मुगलों के सामने डटकर खड़े रहे. यह बात जब औरंगजेब को पता चली तो वो बौखला गया.


जहां गिरा शीश वहां बना गुरुद्वारा


मुगल शासक ने उनके परिवार के सदस्यों को जान से मार दिया. उसे लगा कि वह टूट जाएंगे. और वो जैसा चाहेगा, करेंगे. उसने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म स्वीकार करने का हुकुम सुना दिया लेकिन वह मुगलों के आगे नहीं झुके,


तभी 24 नवंबर 1675 को औरंगजेब के आदेश पर नई दिल्ली में सरेआम चौराहे पर गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया. वर्तमान शीशगंज गुरुद्वारा (Shishganj Gurudwara Delhi) उसी स्थान पर बना है, जहां गुरु तेगबहादुर का शीश गिरा था.


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