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परिवार टूटने से बचाना है तो ‘रामनुज लक्ष्मण’ को समझें

Ramayan: परिवार ही हमारे जीवन का मूल प्रेम है. रिश्तों में मिठास बनाए रखने के लिए, परिवार को टूटने से बचाना है तो रामनुज लक्ष्मण को समझना बेहद जरुरी है.

Ram And Lakshaman: सनातन अथवा हिन्दू धर्म में चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास) के आधार पर मनुष्य जीवन का विभाजन किया हुआ है. इन चारों आश्रमों का मूल ‘गृहस्थ आश्रम’ है. गृहस्थ आश्रम के मूल में ‘परिवार’ आता है. हिन्दू धर्म का पालन और परंपराओं का विकास इसी ‘परिवार अथवा कुटुंब व्यवस्था’ के कारण हुआ है अथवा होता है. गृहस्थ आश्रम को परिवार व्यवस्था कहा जाए तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है. त्रेतायुग के दसरथ महाराज के आदर्श परिवार का उदाहरण आज तक सर्वत्र दिया जाता है. आखिर क्यों?

स्तंभकार डॉ, महेंद्र ठाकुर के अनुसार आज तो हालत ऐसी है कि अपनी चौथी पीढ़ी के पूर्वजों के नाम तक लोगों को याद नहीं होते, लेकिन लाखों वर्षों पूर्व दसरथ महाराज के परिवार की बातें सर्वत्र होती हैं. आखिर क्यों? वैसे हिन्दू धर्म शास्त्र गृहस्थ आश्रम या परिवार व्यवस्था के बखान से भरे पड़ें हैं, लेकिन, दुखद यह है कि लोग उन शास्त्रों का अध्ययन नहीं करते हैं.

इसे कलियुग का प्रभाव ही कहा जा सकता है. दसरथ महराज के जीवन पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है. लोग लिखते भी हैं. प्रभु श्रीराम की महिमा तो ऐसी है कि आज भी सरकारें उनके नाम पर बनती और टूटती हैं और साहित्य निर्माण का तो फिर कहना ही क्या !

श्रीराम हर सदगुण के ‘आदर्श’ हैं. ‘धर्म’ के विग्रह हैं. उनकी महिमा अपरंपार, अनंत है. लेकिन, जब परिवार की बात आती है तो माता सीता, उनके भाइयों और भाईयों की पत्नियों भूमिका भी बनती है. ‘रामायण’ भगवान श्रीराम की महिमा ही है. आदि कवि महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में वर्णित ‘राम परिवार’ के बारे में जब ध्यानपूर्वक पढ़ा जाता है तो हमें आदर्श परिवार व्यवस्था समझ आती है.

परिवार व्यवस्था का अर्थ ही होता है परिवार के सदस्यों का आपसी संबंध कैसा है. ऐसी व्यवस्था जो परिवार को एकजुट रखे. इस एकजुटता का मूल आत्मीय प्रेम में होता है. क्योंकि जहाँ द्वेष होता है वहाँ एकजुटता का प्रश्न ही पैदा न होता. रावण का परिवार इसका उदाहरण है. भगवान श्री राम पर बहुत लिखा जाता है. लेकिन, भगवान राम के भाई अर्थात् ‘रामनुज लक्ष्मण’ के बारे में केवल यही धारणा है कि वे भगवान राम के साथ रहते थे. उनकी सेवा करते थे, 14 वर्ष तक सोये नहीं थे आदि आदि.

जिस तरह से आज भाई-भाई से अलग हो रहा है, परिवार टूट रहें हैं, माता-पिता के आदेश से वनवास को जाने वाले राम के देश में वृद्धाश्रमों की संख्या बढती जा रही है तो राम के भाईयों विशेषकर लक्ष्मण के बारे में विस्तृत विश्लेषण या अध्ययन की आवश्यकता है. वाल्मीकि रामायण के आधार पर इस आलेख में यही गिलहरी प्रयास किया गया है.

वाल्मीकि रामायण में सबसे पहला काण्ड ‘बालकाण्ड’ है. इसमें हमें पता चलता है कि भगवान विष्णु केवल राम रूप में ही अवतरित नहीं हुए थे, बल्कि चार भाइयों के रूप में जन्में थे. जिनमें भगवान विष्णु का 50 प्रतिशत अंश प्रभु श्रीराम में था. 25 प्रतिशत अंश लक्ष्मण के रूप  में था और भरत तथा शत्रुघन में शेष 25 प्रतिशत अंश विभाजित था. इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि चारों भाई विष्णु रूप थे.

प्रभु श्रीराम की कल्पना उनके परिवार विशेषकर भाइयों के बिना नहीं की जा सकती. राम के लिए लक्ष्मण उनकी शक्ति थे और लक्ष्मण के लिए राम शक्ति का स्त्रोत थे, बल्कि उनके लिए सब कुछ थे. परिवार का मतलब ही एक मनोभाव से साथ रहना होता है. जो कुछ भी करना साथ मिलकर करना होता है. यही कारण है कि परिवारों में राम राज्य की कल्पना की जाती है.          

लेकिन, आज विडंवना यह है कि लोग नारे तो जय श्री राम के लगाते हैं, लेकिन छोटी-छोटी बातों के कारण अपने भाई से अलग हो जाते हैं. नशे या बुरी संगत के दुष्प्रभाव में आकर अपने ही भाई के मार्ग में बाधाएं पैदा करते हैं. वैसे सामंजस्य से पारिवारिक उन्नति या व्यवसाय के कारण अलग होते हैं तो कोई समस्या नहीं, लेकिन जब छोटे-छोटे स्वार्थों या बातों के लिए एक ही घर के भवन में दो चूल्हे लग जाते हैं तो समस्या पैदा होती है.

पुत्रों के कारण या पुत्र होने के बाबजूद जब माता-पिता को वृद्धा आश्रम में रहना पड़ता है, भीख माँगना पड़ता है, तो बात चिंतनीय हो जाती है. जो जय श्री राम का नारा लगाता है, राम को आदर्श मानता है,  उनकी पूजा करता है, फिर वह अपने भाई से अलग से कैसे रह सकता है? माता-पिता से अलग कैसे रह सकता है? उनकी बातों की अवेहलना कैसे कर सकता है?  एक भाई दूसरे भाई के राह में कांटे कैसे बिछा सकता है?

जिस भी व्यक्ति का भाई है, इसका अर्थ ही है ‘राम-लक्ष्मण’ के मार्ग का अनुसरण करना. वैसे भाई रावण के भी थे, लेकिन उनके मार्ग का अनुसरण नहीं किया जा सकता ! वाल्मीकि रामायण से पता चलता है कि धर्म मार्ग पर चलने वाले विभीषण को भी प्रभु राम ने अपने साथ लक्ष्मण की ही तरह रखा था. दूसरी बात ध्यान रखने की है यदि लक्ष्मण के गुण रखोगे तो भाई राम जैसा ही मिलेगा.

यदि राम के गुण रखोगे तो भाई लक्ष्मण जैसा ही होगा. यदि ये बात चरितार्थ नहीं हो रही है तो समझ लीजिये आपके पास राम के या लक्ष्मण के गुण नहीं है या अधूरे गुण हैं. याद रखिये यहाँ बड़े भाई या छोटे भाई का प्रश्न नहीं है. प्रश्न केवल भाई का है!

भाई के रूप में लक्ष्मण का चरित्र समझने के लिए अयोध्या कांड के सर्ग 21 का श्लोक 17 ही पर्याप्त है, जिसमें लक्ष्मण माता कौशल्या से कहते हैं :

दीप्तमग्निमरण्यं वा यदि रामः प्रवेक्ष्यति ।

प्रविष्टं तत्र मां देवि त्वं पूर्वमवधारय ।17

अर्थात्: ‘देवि ! आप विश्वास रखें, यदि श्रीराम जलती हुई आग में या घोर वन में प्रवेश करने वाले होंगे तो मैं इनसे भी पहले उसमें प्रविष्ट हो जाऊँगा ॥

अपने भाई के प्रति लक्ष्मण का प्रेम ऐसा था कि वनवास के बारे में सुनकर वे अपने पिता दशरथ को मारने तक की बातें करने लग गये थे. इस सर्ग के श्लोक 18 में राजा दसरथ को मारने की बात की है और सर्ग 23 के श्लोक 23 में दोनों की आशाओं को जलाकर भस्म करने की बात करते हैं.

अहं तदाशां धक्ष्यामि पितुस्तस्याश्च या तव ।

अभिषेकविघातेन पुत्रराज्याय वर्तते ॥ 23

अर्थात्:   ‘मैं पिता की और जो आपके अभिषेक में विघ्न डालकर अपने पुत्र को राज्य देनेके प्रयत्नं में लगी हुई है, उस कैकेयी की भी उस आशा को जलाकर भस्म कर डालूँगा ॥

अयोध्या काण्ड के सर्ग 31में लक्ष्मण और राम के संवाद को पढ़कर पता चलेगा कि एक भाई का दूसरे भाई के प्रति कैसा भाव होना चाहिए. श्लोक 5 में लक्ष्मण कहते हैं:

न देवलोकाक्रमणं नामरत्वमहं वृणे ।

ऐश्वर्य चापि लोकानां कामये न त्वया विना ॥5

अर्थात्: ‘मैं आपके बिना स्वर्ग में जाने, अमर होने तथा सम्पूर्ण लोकों का ऐश्वर्य प्राप्त करने की भी इच्छा नहीं रखता॥

इसी कांड के सर्ग 53 के श्लोक 31 में लक्ष्मण कहते हैं

न च सीता त्वया हीना न चाहमपि राघव ।

मुहूर्तमपि जीवावो जलान्मत्स्याविवोद्धृतौ ॥ 31

अर्थात् ‘रघुनन्दन । आपके बिना सीता और मैं दोनों दो घड़ी भी जीवित नहीं रह सकते। ठीक उसी तरह, जैसे जल से निकाले हुए मत्स्य नहीं जीते हैं ।’

इसी कांड के सर्ग 58 के श्लोक 31 में लक्ष्मण कहते हैं

अहं तावन्महाराजे पितृत्वं नोपलक्षये ।

भ्राता भर्ता च बन्धुश्च पिता च मम राघवः ॥ 31

अर्थात्: ‘मुझे इस समय महाराज में पिता का भाव नहीं दिखायी देता। अब तो रघुकुलनन्दन श्रीराम ही मेरे भाई, स्वामी, बन्धु-बान्धव तथा पिता हैं ॥

सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण वास्तव में पारिवारिक संबंधो, विशेषकर भाइयों के संबंधों का ही चित्रण हैं, जिसमें अन्य चरित्र केवल सहयोगी का काम करते हैं. श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का भ्रातृत्व प्रेम अनुपम था, जबकि भाई के रूप में रावण अपने भाईयों को समझ ही न पाया.

यही कारण रहा कि उसने विभीषण को अपने से दूर कर दिया. जबकि अयोध्या कांड के सर्ग 97 के श्लोक 8 में राम अपने भाइयों के प्रति अपने भाव प्रकट करते हुए लक्ष्मण से कहते हैं:

यद् विना भरतं त्वां च शत्रुघ्नं वापि मानद ।

भवेन्मम सुखं किंचिद् भस्म तत् कुरुतां शिखी ॥ 8

अर्थात्: ‘मानद ! भरत को, तुमको (लक्ष्मण को) और शत्रुघ्न को छोड़कर यदि मुझे कोई सुख मिलता हो तो उसे अग्निदेव जलाकर भस्म कर डालें ॥

जब भाई भाई बंट जाते हैं, एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो वही होता है जो विभीषण के जाने के बाद महाशक्तिशाली, रावण के साथ हुआ था. भाई ही भाई की शक्ति होता है. दो भाई जब मिलकर काम करते हैं तो बड़ी से बड़ी समस्या का निदान हो जाता है. इसका उदाहरण हमें वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के सर्ग 4 में मिलता है. जब श्रीराम और लक्ष्मण मिलकर विराथ राक्षस को मारते हैं,  कबंध का वध भी इसी बात का का प्रमाण है.  

प्रभु राम जैसे महाशक्तिशाली योद्धा भी भाई के बिना कितने दुर्बल और असहाय हो सकते हैं. इसका अनुमान वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड के सर्ग 49 और सर्ग 101 में श्रीराम के विलाप से हो सकता है. श्रीराम के विलाप से भाइयों के प्रेम और महत्व को समझा जा सकता है.

लक्ष्मण अपने भाई राम के लिए सारे सुख, ऐश्वर्य यहाँ तक स्वर्ग और अमरत्व तक का तिरष्कार करने की बात करते हैं. भाई के लिए अपना सब कुछ न्योछवर कर देते हैं, यहाँ तक कि राम के त्याग देने से पृथ्वी पर अपनी लीला समाप्त करके सशरीर स्वर्ग चले जाते हैं (उत्तरकाण्ड के सर्ग 106).

वहीं राम ने भी अपने जन्म से अंतिम समय तक अपने भाइयों को विशेष महत्त्व दिया. श्री राम ने धरती अकेले नहीं छोड़ी, बल्कि अपने भाईयों (भरत और शत्रुघ्न) को साथ लेकर छोड़ी (उत्तरकाण्ड सर्ग 110). 

ये कलियुग का ही प्रभाव है कि आज छोटी-छोटी बातों के लिए भाई-भाई को काट रहा है, लूट रहा है, कोर्ट केस चल रहे हैं, एक दूसरे के साथ उठना बैठना बंद है, एक भाई दूसरे भाई की उन्नति से ईर्ष्या करता है, एक भाई दूसरे भाई की राह में रोड़े अटकाता है, एक भाई दुखी हो तो दूसरा खुश होता है. जब भाई-भाई टूटते हैं तो घर टूटता है. माता-पिता टूटते हैं. कुल मिलाकर पतन शुरू हो जाता है.

भाई-भाई एक शक्ति होती है. फिजिक्स का एक नियम है जिसके अनुसार

F =ma अर्थात् फोर्स (बल या शक्ति) = मास X एक्सेलेरेशन

शक्ति अथवा बल का मतलब ही 2 (मास X एक्सेलेरेशन) कारकों पर निर्भर होता है. संबंधों में ये दो कारक दो भाई होते हैं. और जहाँ शक्ति होती है वहां उन्नति होती है, वहां विजय होती है.

प्रभु राम और उनके भाईयों, विशेषकर लक्ष्मण ने यही प्रतिपादित किया है. यहाँ एक संकेत करना आवश्यक है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण भी अकेले नहीं आये, बल्कि बलराम के रूप में भाई लेकर ही आये चाहे अलग अलग गर्भ से जन्में हों.

अंत में, जो ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष करेगा वो अपने भाई से कभी लड़-झगड़कर अलग नहीं होगा. वो कभी अपने माता-पिता को वृद्धा आश्रम नहीं भेजेगा, वो अपने हर कर्तव्य का पालन करेगा. वो अपने भाई की राह में कोई रोड़ा नहीं अटकाएगा. वो जो कुछ भी करेगा भाई के साथ मिलकर करेगा. यही रामायण का सार और संदेश है.

नारायणायेती समर्पयामि........

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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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