Hal Shashti 2023: हल षष्ठी व्रत कब ? नोट करें डेट, पूजा मुहूर्त और संतान के लिए खास है ये दिन
Hal Shashthi 2023 Kab Hai: हल षष्ठी व्रत भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है. संतान की दीर्घायु और कुशलता के लिए ये व्रत बहुत महत्वपूर्ण है. आइए जानते हैं हल षष्ठी की डेट, मुहूर्त और महत्व
Hal Shashthi 2023: सावन के बाद भाद्रपद माह की शुरुआत हो जाएगी. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी के नाम से जाना जाता है. इस दिन महिलाएं संतान की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए व्रत रखती हैं.
हल षष्ठी व्रत भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान बलराम का जन्म हुआ था. नववाहिता ये व्रत संतान सुख के लिए करती हैं. आइए जानते हैं हल षष्ठी व्रत की डेट, मुहूर्त और महत्व.
हल षष्ठी 2023 डेट (Hal Shashti 2023 Date)
इस साल हल षष्ठी 5 सितंबर 2023 को है. इसे बलराम जयंती और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है. साल तीन बार छठ का पर्व मनाया जाता है, ललही छठ (Lalahi Chhath 2023), चैती छठ और कार्तिक माह में आने वाली बड़ी छठ शामिल है. हिंदू धर्म में संतान की तरक्की, सुख-शांति के लिए छठ का पर्व खास माना गया है.
हल षष्ठी 2023 मुहूर्त (Hal Shashti 2023 Muhurat)
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 4 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 5 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर इशका समापन होगा.
- सुबह 09.31 - दोपहर 12.37
हल छठ व्रत महत्व (Hal Shashti Significance)
धर्म ग्रंथों के अनुसार बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है, उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है. इसे हलधर भी कहा जाता है. . इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है
हल षष्ठी पूजा विधि (Hal Shashthi Puja Vidhi)
हल षष्ठी के दिन महिलाएं एक गड्ढा बनाकर उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप देती हैं. इस तालाब में झरबेरी और पलाश की एक शाखा बांधकर उसमें गाड़ दिया जाता है. भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है. पूजा के समय 7 तरह का अनाज चढ़ाया जाता है. इस व्रत में हल से जोत कर उगाए हुए अन्न को नहीं खाया जाता है. पूजा के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है. रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करते हैं.
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