Ramayan :  प्रभु श्रीराम के राज्य अभिषेक पर भगवान खुद अपने हाथों से सुग्रीव, विभीषण आदि को अनेक बहुमूल्य रत्न, वस्त्र और आभूषण बांट रहे थे, लेकिन उन्होंने परमभक्त हनुमानजी की अनदेखी कर दी थी. सभी हैरान थे कि आखिर प्रभु हनुमानजी को कैसे भूल सकते हैं. सब कुछ सुनकर भी प्रभु शांत रहे. मगर मां सीता उनकी लीला समझ रही थीं, इतने में उन्होंने हनुमान की एहमियत बताने के लिए खुद एक लीला रची. सीताजी ने अपने गले से बहुमूल्य रत्नों का हार निकालकर हनुमानजी को पहना दिया, यह देखकर सभी मां की जयजयकार करने लगे. हनुमानजी ने भी इसे बड़े प्रेम से स्वीकार किया. दूसरे ही क्षण अचानक सभी हनुमानजी को देखने लगे.


अचानक रत्नों को देखकर हनुमानजी हार से एक-एक मणि निकालकर तोड़ने लगे. एक एक को गौर से देखा फिर फेंक दिया. यह देखकर रामजी मुस्कुराने लगे तो सीता गंभीर हो गईं. भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण भी हैरानी से देखते रहे. लेकिन चुप नहीं रह सके.उन्होंने पूछा– हनुमान! यह आप क्या कर रहे हैं, इन कीमती रत्नों को धूल में क्यों मिला रहे हैं. तभी किसी ने कहा, आखिरकार वानर ही है ना! वे रत्नों को क्या जानें.


लोगों को गुस्सा होते हुए देखकर हनुमानजी ने कहा, आप लोग क्यों नाराज़ हैं? मुझे इन रत्नों के महत्व का अहसास है, इन्हें पहनने से सुंदरता भी बढ़ती है मगर मेरे लिए केवल एक चीज इसमें मायने रखती है, वो है इसमें प्रभु का दर्शन. मगर इसमें भगवान ही नहीं दिख रहे. अब इनकी चमक मुझे अंधकार लग रही. यह मेरे लिए काम का नहीं है? इसे एक बार टूटना ही है. इस बीच किसी ने पूछा कि क्या आपके हृदय में राम हैं? ऐसा है तो दिखाएं, अन्यथा इस हृदय का भार क्यों उठा रहे हैं.


हनुमान ने दो टूक कहा कि निश्चित रूप से भगवान हृदय में हैं, यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा आप सामने अभी उन्हें देख रहे हैं. इसके बाद उन्होंने अपने दोनों हाथों से सीना चीर दिया, जिसमें प्रभु श्रीराम, मां सीता चार भाई के साथ बैठे दिखे. यह देखककर सभी लोग हनुमान का गुणगान करने लगे. हनुमान का फटा सीना देखकर प्रभु भावुक हो उठे. सिंहासन से उठकर वह हनुमान को गले से लगा लेते हैं, जैसे ही भगवन ने उनके शरीर को स्पर्श किया, उनका सीना खुद ठीक हो गया. वहां मौजूद सभी यह समझ गए कि आखिर भगवान ने हनुमान को उपहार क्यों नहीं दिया. हनुमानजी की राम की अनन्य भक्ति का सबसे बड़ा उदहारण बना.


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