Teachers Day 2023 Dohe: संत कबीर के दोहे में है गुरु की महिमा का बखान, जिसे पढ़ते ही बढ़ जाएगा शिक्षक के प्रति सम्मान
Teachers Day 2023 Dohe: हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. यह उन खास दिनों में एक है, जिसमें हम हमारे उन मार्गदर्शकों और गुरुजनों का आभार व्यक्त करते हैं, जिनसे हमें ज्ञान की प्राप्ति हुई.
Teachers Day 2023 Dohe: 5 सितंबर को हर साल शिक्षक दिवस या टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इस साल भी मंगलवार 5 सितंबर 2023 को भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में तो शिक्षक को गुरु माना गया है, जिसका दर्जा भगवान से भी ऊपर है.
शिक्षक हमारे भीतर ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करते हैं. शिक्षक से ही ज्ञान प्राप्त कर हम सफलता को पाते हैं और जीवन में आने वाली चुनौतियों से लड़ना सीखते हैं. इसलिए शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है.
संत कबीर दास भी अपने दोहे के माध्यम से शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं. उन्होंने अपने दोहों से जीवन में शिक्षक के मूल्य को गहराई से समझाया है. साथ ही कबीर दास के दोहे से शिष्य और गुरु के बीच अटूट प्रेम और बंधन का भी वर्णन किया गया है. जानते हैं शिक्षक दिवस पर कुछ ऐसे ही कबीर दास के दोहे, जो गुरु की महिमा पर आधारित है.
शिक्षक दिवस पर कबीर दास के दोहे (Kabir Das Dohe for Teacher’s Day 2023)
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और,
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर.
अर्थ है: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं, जो अंधे और मूर्ख हैं, जो गुरु की असीम महिमा को समझ नहीं पाते हैं. वो जो ऐसा सोचते हैं कि गुरु और भगवान का अस्तित्व एक दूसरे से भिन्न हैं. लेकिन इस बात को गहराई से समझना जरूरी है कि, अगर जीवन में भगवान रूठ जाए, तो ऐसे में आप गुरु की ओर मुख फेर सकते हैं. लेकिन अगर कभी गुरु रूठ जाए तो फिर कहीं भी शरण मिल पाना मुश्किल है.
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।
अर्थ है: कबीर दास कहते हैं कि, जीवन में ऐसी स्थिति आए, जिसमें गुरु और गोविंद यानी ईश्वर और गुरु दोनों ही आपके सामने एक साथ खड़े हों और उस समय आप किसके सामने पहले अपना शीश झुकाएंगे. तो इस इसे लेकर कबीर दास जी बहुत साधारण और सटीक जवाब देते हुए कहते हैं कि, जिसने जीवन में गोविंद से हमारा परिचय करवाया. अगर गुरु हमें उनके विषय में बताते ही नहीं तो आज हमारे मन में ईश्वर के लिए आदर, सत्कार नहीं होता. इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द यानी ईश्वर से भी ऊंचा है.
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान,
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
अर्थ है: इन पंक्तियों में कबीर कहते हैं कि, शिष्य की तुलना विष की बेल करते हैं और गुरु को अमृत की खान की उपाधि प्रदान कर उनका परिचय देते हैं. गुरु का ज्ञान और उनकी महिमा इतनी निराली और बेशकीमती है कि, यदि शिष्य अपना शीश कलम करके भी गुरु की कृपा पा जाए तो ये भी एक बहुत ही सस्ता सौदा होगा.
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं,
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि।
अर्थ है: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि, जीवन में गुरु बनाने के ज्यादा जरूरी है एक अच्छा गुरु बनाना. कभी भी बाहर की खूबसूरती और आडम्बर को देखकर किसी को अपना न बनाएं या उसे गुरु की उपाधि नहीं दें. गुरु बनाने के लिए उसके भीतर का ज्ञान, गुण, आत्मा को देखना जरूरी है. वरना आपको संसार रूपी सागर में गोता लगाना पड़ेगा.
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं,
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं।
अर्थ है: कबीर दास इस दोहे में कहते हैं कि, गुरु की आज्ञा को सिर आंखों पर रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए. ऐसा करने वाले शिष्यों को तीनों लोकों में किसी का भय नहीं रहता.
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