Harela Festival 2024: देवभूमि उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला के साथ सावन की शुरुआत, भगवान शिव से क्या है संबंध
Harela Festival 2024: हरेला, देवभूमि उत्तराखंड का लोकपर्व है, जिसे कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है. इस पर्व के साथ ही सावन (Sawan 2024) की शुरुआत हो जाती है. आइये जानते हैं हरेला पर्व का महत्व.
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Harela Festival 2024: उत्तराखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ हरेला पर्व मनाया जाता है. लोकपर्व हरेला सावन (Sawan 2024) के आगमन का संदेश है. हरेला देवभूमि उत्तराखंड (Uttarakhand) का लोकपर्व है, जोकि प्रकृति से जुड़ा है. खासतौर पर हरेला पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है.
कब है हरेला पर्व (Harela Festival 2024 Date)
जब सूर्य देव कर्क राशि में प्रवेश (Surya Gochar in kark Rashi) करते हैं तो हरेला का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष हरेला पर्व आज 16 जुलाई 2024 को मनाया जा रहा है. उत्तराखंड को शिवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Jyotirlinga) और शिवजी (Lord Shiva) का ससुराल भी है. इसलिए उत्तराखंड में हरेला पर्व की खास महत्व है. इस दिन लोग भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी करते हैं.
कैसे मनाया जाता है हरेला पर्व
हरेला पर्व की तैयारियों में लोग 9 दिन पहले से ही जुट जाते हैं. 9 दिन पहले घर पर मिट्टी या फिर बांस से बनी टोकरियों में हरेला बोया जाता है. हरेला के लिए सात तरह के अनाज, गेहूं, जौ, उड़द, सरसो, मक्का, भट्ट, मसूर, गहत आदि बोए जाते हैं. हरेला बोने के लिए साफ मिट्टी का प्रयोग किया जाता है. हरेला बोने के बाद लोग 9 दिनों तक इसकी देखभाल भी करते हैं और दसवें दिन इसे काटकर अच्छी फसल की कामना की जाती है और इसे देवताओं को समर्पित किया जाता है. हरेला की बालियां से अच्छे फसल के संकेत मिलते हैं.
हरेला पर्व का महत्व (Harela Festival 2024 Significance)
पंचांग (Panchang) के अनुसार सावन की शुरुआत 22 जुलाई 2024 से हो रही है. लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में सावन की शुरुआत अलग-अलग तिथियों से होती है. उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन की शुरुआत मानी जाती है. वैसे तो हरेला पर्व साल में तीन बार चैत्र, सावन और आश्विन माह में मनाया जाता है. लेकिन सावन माह की हरेला अधिक प्रचलित और महत्वपूर्ण होती है. इस दिन लोग कान के पीछे हरेला का तिनका लगाते हैं, गाजे-बाजे और पूजा-पाठ के साथ दिनभर पौधे लगाए जाते हैं. लोग बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं और हरेला की बालियां या तिनके भी आशीर्वाद के तौर पर पर एक-दूसरे भेजे जाते हैं.
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