Raja Harishchandra: राजा हरिश्चंद का संबंध इकक्षवाकू वंश से था. उनके राज्य में कोई भी दुखी नहीं था पूरे राज्य में सुख समृद्धि और शांति थी. जिस कारण उनकी ख्याति चारों दिशाओं में फैली हुई थाी. उनके बारे में यह कहा जाता था कि राजा हरिश्चंद्र अगर सपने में भी कोई वचन दे दें तो उसे पूरा करते हैं. हरिश्चंद्र की पत्नी का नाम तारामती और पुत्र का नाम रोहिताश्व था. उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही सुखद था.
अपनी सत्यवादी छवि के कारण राजा की लोकप्रियता जब अधिक होने लगी तो महर्षि विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने का निर्णय किया और राजा को एक सपना दिया. राजा हरिश्चंद्र ने सपने में देखा कि उनके राजभवन में कोई ऋषिमुनि आए हैं और वे उनका सत्कार कर रहे हैं. राजा ने सपने में ही इस ऋषिमुनि को अपना पूरा राज्य दान में दे दिया है. नींद से जागने के बाद राजा इस सपने को भूल गए. लेकिन इसके अगले ही दिन महर्षि विश्वामित्र राजा के दरबार में आ गए और सपने के बारे में याद दिलाया. याद कराने पर राजा को सपना याद आ गया. राज्य को दान में देने की बात को स्वीकार किया.
सपने के मुताबिक राजा ने अपना राज्य महर्षि को दान में दे दिया और सिंहासन से नीचे उतर आए. चलते समय महर्षि ने राजा से दक्षिणा मांगी. दान देने के बाद दक्षिणा देने की परंपरा है. राजा ने मंत्री से दक्षिणा देने के लिए राजकोष से स्वर्ण मुद्रा लाने के लिए कहा. इस बात पर विश्वामित्र को क्रोध आ गया और बोले कि जब राज्य ही नहीं रहा तो राजकोष का क्या अर्थ. इस पर राजा को गलती का अहसास हुआ और दक्षिणा देने के लिए समय मांगा. क्योंकि राजा सत्यवादी होने के साथ साथ कर्तव्यनिष्ठ भी थे. राजा ने कहा कि दक्षिणा जरुर दी जाएगी. लेकिन थोड़ा समय प्रदान करें इस पर महर्षि ने उन्हें मोहलत दे दी. लेकिन समय का ध्यान रखने की चेतावनी भी दी. राजा दक्षिणा न देकर अपयश नहीं लेना चाहते थे.
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दक्षिणा को देने के लिए राजा ने अपने आप को बेच दिया. राजा पत्नी और बच्चे के साथ काशी आ गए. यहां पर राजा को एक शमशान घाट के मालिक डोन ने खरीद लिया. राजा पत्नी से अलग हो गए, पत्नी लोगों के घरों में साफ,सफाई और बर्तन धोने का कार्य करने लगीं. पुत्र रानी के पास ही रहा. इसके बाद राजा ने महर्षि की दक्षिणा का प्रबंध किया. राजा को शमशान घाट पर रखवाली करने का काम मिला. जिसे राजा पूरी ईमानदारी से करने लगे. हरिश्चंद्र राजा से रंक हो चुके थे. शमशान घाट पर जो भी शव जलाने आता, राजा उनसे कर भी वसूलते थे.
लेकिन एक दिन राजा के पुत्र को सांप ने डस लिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई. रानी रोती बिलखती रही. बाद में रानी अपने पुत्र के शव को अपने हाथों में लेकर रात में श्मशान घाट पहुंची. श्मशान घाट पर चिताएं जली रही थीं. राजा अपना काम निपटा रहे थे. राजा ने पत्नी तारामती को पहचान लिया. लेकिन राजा ने कहा कि अंतिम संस्कार तभी होगा जब वे कर अदा करेंगी. इस पर पत्नी ने कहा कि महाराज मेरे पास कर चुकाने के नाम पर कुछ भी नहीं है. राजा ने किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू पाया और कहा कि कर तो देना ही होगा. वे अपने मालिक की आज्ञा को अनदेखा नहीं कर सकते. कर नहीं लिया तो मालिक के प्रति विश्वासघात कहलाएगा.
तारामती रोती रहीं तो राजा ने कहा कि अगर तुम्हारे पास नहीं है तो अपनी साड़ी का आधा भाग चीरकर उन्हें दे दें. इसी को कर समझ कर ले लेंगे. तारामती के सामने कोई दूसरा चारा नहीं था. लेकिन जैसे ही तारामती ने अपनी साड़ी को चीरने की कोशिश की आकाश में तेज गर्जना हुई और महर्षि विश्वामित्र प्रकट हुए. महर्षि ने अपने प्रताप से पुत्र रोहिताश्व को भी जीवित कर दिया. विश्वामित्र हरिश्चन्द्र से प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया. महर्षि ने बताया कि वे राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ले रहे थे, जिसमें वे खरे उतरे हैं. बाद में महर्षि ने उनका राजपाट भी लौटा दिया. महर्षि ने कहा कि सत्य और धर्म की जब भी बात आएगी राजा हरिश्चंद्र का नाम सम्मान और आर्दश के साथ लिया जाएगा.
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