नई दिल्ली: हरतालिका तीज का पर्व भादो माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को यानि गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले मनाया जाता है. महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास रखकर रात में शिव-पर्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं और पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं. इस पूजा में प्रसाद के तौर पर अन्य फल तो रहते ही हैं, लेकिन पिडुकिया' (गुझिया) का रहना अनिवार्य माना जाता है.
किस तरह किया जाता है व्रत
इस दिन औरतें 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और रात भर जागरण करती हैं. इसके बाद सुबह पूजा पाठ करके इस व्रत को खोलती हैं. उत्तर भारत में इस त्यौहार को प्रमुख्ता से मनाया जाता है. तीज में महिलाओं के श्रृंगार का खास महत्व होता है. पर्व नजदीक आते ही महिलाएं नई साड़ी, मेहंदी और सोलह श्रृंगार की सामग्री जुटाने लगती हैं और प्रसाद के रूप में विशेष पकवान 'पिड़ुकिया' (गुझिया) बनाती हैं.
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भी तीज मनाई जाती है, जिसे छोटी तीज या 'श्रावणी तीज' कहा जाता है, जबकि भाद्रपद महीने में मनाई जाने वाली तीज को बड़ी तीज या 'हरितालिका तीज' कहते हैं. इस पूजा में भगवान को प्रसाद के रूप में पिडुकिया' अर्पण करने की पुरानी परंपरा है. आमतौर पर घर में मनाए जाने वाले इस पर्व में महिलाएं एक साथ मिलकर प्रसाद बनाती हैं. पिडुकिया बनाने में घर के बच्चे भी सहयोग करते हैं. पिडुकियां मैदा से बनाई जाती हैं, जिसमें खोया, सूजी, नारियल और बेसन अंदर डाल दिया जाता है. पूजा के बाद आस-पड़ोस के घरों में प्रसाद बांटने की भी परंपरा है. यही कारण है किसी भी घर में बड़ी मात्रा में प्रसाद बनाया जाता है.
त्रेतायुग से है पर्व की परंपरा
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, इस पर्व की परंपरा त्रेतायुग से है. इस पर्व के दिन जो सुहागिन स्त्री अपने अखंड सौभाग्य और पति और पुत्र के कल्याण के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. धार्मिक मान्यता है कि पार्वती की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने तीज के ही दिन पार्वती को अपनी पत्नी स्वीकार किया था. इस कारण सुहागन स्त्रियों के साथ-साथ कई क्षेत्रों में कुंवारी लड़कियां भी यह पर्व करती हैं.
व्रत की तिथि को लेकर है असमंजस
पंचांग के अनुसार इस साल तृतीया तिथि का क्षय हो गया है. जिस कराण महिलाओं में 1 सितंबर और 2 सितंबर को व्रत करने को लेकर असमंजस हो गया है. कुछ लोगों का इसे लेकर कहना है कि हरतालिका तीज का व्रत हस्त नक्षत्र में मान्य होता है, जो कि एक सितंबर को है. 1 सितंबर को सुबह 08:27 से तृतिया लग जाएगी जो 2 सितंबर को रात्रि 04:57 मिनट तक रहेगी. 2 सितंबर को ये व्रत रखा जाता है तो सूर्योदय के बाद चतुर्थी प्रारंभ हो जाएगी. जिसके कारण इस व्रत को रखने का कोई खास अर्थ नहीं रह जाता.
वहीं दो सितंबर को व्रत रखने को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि ग्रहलाघव पंचांग के अनुसार सुबह 08:58 मिनट तक तृतिया रहेगी. इस पंचांग के अनुसार 2 सितंबर का सुर्योदय तृतिया तिथी में ही होगा. इसके साथ ये तर्क भी दिया जा रहा है कि 1 सितंबर को व्रत रखने वाली महिलाओं को व्रत का पारण हस्त नक्षत्र में ही करना होगा जो सही नहीं है, वहीं दो सितंबर को व्रत रखने वाली महिलाएं 3 सितंबर को व्रत का पारण चित्रा नक्षत्र में करेंगी जो की बहुत फलदायी माना गया है.
आप अपने किसी पंडित और ज्योतिष से इस बारे में पूछकर तय कर सकती हैं कि व्रत किस दिन करना फलदायी रहेगा.
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