Hartalika Teej 2020: हरतालिका तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. हरतालिका तीज के पर्व पर सुहागिन स्त्रियां व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. वहीं अविवाहित युवतियां मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं. हरतालिका तीज का पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और दिल्ली समेत सभी राज्यों में पूरे भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है.


हरतालिका तीज का व्रत कठिन व्रतों में से एक है
हरतालिका तीज का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. महिलाएं बिना अन्न और जल ग्रहण किए इस व्रत को पूर्ण करती हैं. मान्यता है कि इस कठिन व्रत को पूरे भक्तिभाव और विधि पूर्वक करने से मनचाहे फल प्राप्त होते हैं. वहीं घर में सुख समृद्धि और शांति आती है. जीवन में आने वाली कठिनाइयों को भी हरतालिका तीज की पूजा दूर करती है. दांपत्य जीवन में यह व्रत खुशियां भरने वाला माना गया है.


हरतालिका तीज की कथा
माना जाता है कि हरतालिका तीज के दिन ही भगवान शिव जी ने माता पार्वती को हरतालिका तीज व्रत के बारे में बताया था. एक पौराणिक कथा के अनुसार मां गौरा ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. माता पार्वती बचपन से ही भोलेनाथ को वर के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं. माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या आरंभ की. माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 12 साल तक कठोर तपस्या की. माता पार्वती ने इस तपस्या को बिना अन्न और जल ग्रहण किए पूरी की. एक दिन नारद जी ने माता पार्वती के पिता से कहा कि भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं. इस बात से हिमालय राज बहुत प्रसन्न हुए.


नारद ने भगवान विष्णु से कहा कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं. नारद की बात सुनकर भगवान विष्णु ने हां कर दी. इसके बाद नारद माता पार्वती के पास गए और कहा उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया गया है. इस बात से पार्वती माता को बहुत निराश हुई और वे एक गुप्त स्थान पर चलीं गईं. इस एकांत स्थान पर माता पार्वती ने पुन: तपस्या आरंभ की, क्योंकि वे सिर्फ शिवजी से विवाह करना चाहती थीं. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग बनाए. पौराणिक मान्यता के अनुसार उस दिन संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था. इस दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण किया और भगवान की स्तुति की. तब भगवान शिव प्रसन्न हुए और मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया.


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