Hartalika Teej Vrta Katha In Hindi: यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया तिथि यानी 30 अगस्त 2022, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं.मान्यता है कि भगवान शिवजी को अपने पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने सबसे पहले इस व्रत का पालन किया था.इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है. चलिए जानते हैं कि आखिर इस व्रत का नाम हरतालिका तीज (Hartalika Teej) कैसे पड़ा? और क्या है इसकी कथा.
कैसे पड़ा हरतालिका तीज का नाम
इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योकि पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी.देवी पार्वती ने मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं.पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं. इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा.
हरतालिका तीज व्रत कथा
इस व्रत के पीछे माता पार्वती और भगवान शिव की कथा काफी प्रचलित है. कहा जाता है कि पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सहन नहीं कर पाई. उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया. अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमाचल के यहां जन्म लिया और इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की. देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं.
राजा हिमाचल चिंतित होने लगे
पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता सताने लगी.इस संबंध में उन्होंने नारदजी से चर्चा की. उनके कहने पर उन्होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्णु से कराने का निश्चय किया.
पार्वतीजी ने विवाह के लिए मना किया
पार्वतीजी विष्णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं, पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं. इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा.
जब की कठोर तपस्या
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया, उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया. ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली, तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया
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