Neem Karoli Baba: कैसे एक विदेशी बन गया बाबा नीम करोली का भक्त, रिचर्ड अल्पर्ट से कहलाने लगा रामदास
Neem Karoli Baba: नीम करोली बाबा से जुड़े कई चमत्कारिक किस्से सुनने को मिलते हैं. लेकिन बाबा के चमत्कार का ऐसा प्रभाव हुआ कि एक विदेशी नशेड़ी भी बाबा नीम करोली का भक्त बन गया.
Neem Karoli Baba, Miracles Story in Hindi: नीम करोली महाराज के भक्त देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में फैले हुए हैं. नीम करोली बाबा में कई चमत्कारिक और आध्यात्मिक शक्तियां थीं. बाबा के अनुयायी उन्हें भगवान हनुमान जी का अवतार मानते थे.
नीम करोली बाबा से जुड़े कई चमत्कारिक किस्से सुनने को मिलते हैं. बाबा के चमत्कारों पर एक किताब भी लिखी जा चुकी है, जिसका नाम है ‘मिरेकल ऑफ लव’. इस किताब को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे रिचर्ड अल्पर्ट ने लिखा, जिन्हें अब रामदास के नाम से जाना जाता है.
कभी घातक नशे की लत में डूबे थे रिचर्ड
बाबा के भक्तों की सूची में देश-विदेश की कई नामचीन हस्तियों के नाम शामिल है. इन्हीं में एक है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर रिचर्ड अल्पर्ट. एक समय ऐसा था कि रिचर्ड नशे की लत में डूबे थे. वह घातक नशे के आदी हो गए थे.
रिचर्ड 1967 में पहली बार भारत आए थे. उस समय वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी इंग्लैंड में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे. रिचर्ड मनुष्य को दिग्भ्रमित करने वाले रसायनों और घातक नशे एलएसडी और सिलोसिबिन से होने वाले प्रभावों पर अध्ययन कर रहे थे. अध्ययन के लिए वो खुद भी एलएसडी की नशीली दवाओं का सेवन करते थे. इस कारण उन्हें भी इन दवाओं की लत लग गई थी. लेकन रिचर्ड का आध्यात्म के प्रति भी लगाव था. नशे का आदी होने के बाद वो यह समझ नहीं पा रहे थे कि नशे और आध्यात्म के बीच सामंजस्य कैसे बैठाया जाए. अपनी इसी समस्या के समाधान के लिए वो बाबा नीम करोली महाराज की शरण में पहुंचे.
इस चमत्कार के कारण नीम करोली के भक्त बन गए रिचर्ड
रिचर्ड जब बाबा नीम करोली से मिले तो न केवल उसके नशे की लत छूट गई बल्कि वो बाबा के भक्त भी बन गए और समाज सेवक के रूप में काम करने लगे. नीम करोली बाबा से रिचर्ड ने दीक्षा दी और बाबा ने ही रिचर्ड को रामदास का नाम दिया.
रिचर्ड ने अपनी किताब 'मिरेकल ऑफ लव' में बाबा के चमत्कार का जिक्र करते हुए लिखा है कि, जब वो पहली बार नीम करोली बाबा से मिले थे तो उन्हें अपनी समस्या के बारे में नहीं बता पा रहे थे. लेकिन कई मुलाकातों के बाद एक बार बाबा ने खुद ही उनसे पूछ लिया कि, वह दवा कहां है? रिचर्ड एकदम से चौंक गए और बाबा के कहने पर नशे वाली दवाई एलएसडी की शीशी बाबा को दे दी. बाबा ने शीशी में से तीन गोलियां खा ली और उनपर इसके नशे का कोई असर नहीं हुआ, जबकि एलएसडी की एक गोली किसी वयस्क व्यक्ति के लिए काफी है.
इस घटना के बाद रिचर्ड वापस अमेरिका चले गए और चार साल बाद उनकी मुलाकात बाबा से हुई. इस बार भी बाबा ने खुद ही रिचर्ड से वो दवाई मांगी और चार गोलियों को जीभ पर रखते हुए खा ली. लेकिन इस बार भी नशे की गोलियों का बाबा पर कोई असर नहीं हुआ.
बाबा नशे की इन गोलियों को खाकर रिचर्ड के मन में चल रहे सवाल का जवाब दे दिया कि, नशे में कुछ नहीं रखा है. अगर किसी चीज का नशा करना ही है तो आध्यात्म और समाज सेवा का करो. इससे बड़ा कोई नशा नहीं.
नीम करोली बाबा के इस संदेश का रिचर्ड के जीवन पर न केवल गहरा प्रभाव पड़ा बल्कि उसकी जीवन की धारा ही बदल गई. वो बाबा से दीक्षा लेने के बाद रामदास बन गए और समाज सेवा के लिए काम करने लगे और अपना संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया. इस तरह से नीम करोली बाबा के चमत्कार से एक विदेशी नशेड़ी भी बाबा का भक्त बन गए.
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