Hazrat Ali Death Anniversary: हजरत अली का शहादत दिवस आज, जानें उनके बारे में खास बातें
Hazrat Ali: मुसलमानों के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद के भाई हजरत अली की शहादत 21 रमज़ान को हुई. उनके इंसाफ की मिसाल दी जाती है. जानते हैं उनके शहादत दिवस पर उनके बारे में.
Hazrat Ali Death Anniversary: मुसलमानों के आखिरी पैगंबर और रसूल अल्लाह हज़रत मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली का जन्म 13 रजब (इस्लामि कैलेंडर के हिसाब से सातवां महीना) 600 ईस्वी को हुआ. वहीं उनकी शहादत 21 रमज़ान को हुई. पैगंबर मोहम्मद के बाद सुन्नी मुसलमान हज़रत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया समुदाय हजरत अली को पहला इमाम मानते हैं.
काबे में हुआ जन्म
हजरत अली का जन्म मुसलमानों के बीच सबसे पाक माने जाने वाली जगह काबा में हुआ था. ऐसी मान्यता है कि जब हजरत अली का जन्म होने वाला था तो उनकी मां फातमा बिन्ते असद काबे के पास गईं और काबे की दीवार में फट गई, जिसके बाद उनकी मां अंदर गईं और हजरत अली का जन्म काबे के अंदर हुआ.
चौथे खलीफा बने हजरत अली
पैंगबर मोहम्मद के बाद हजरत अबू बक्र को पहला खलीफा माना गया. वे पैगंबर के ससुर भी थे. दो साल बाद उनकी मृत्यु हो गई, उसके बाद हजरत उस्मान और हजरत उमर को खलीफा बनाया गया. इसके बाद हजरत अली खलीफा बने.
चार साल की हुकुमत
हजरत अली ने खलीफा बनने के बाद करीब चार साल तक हुकुमत की. हजरत अली को सबसे शुजा (बहादुर) माना जाता है. उन्होंने इस्लाम के लिए कई जंगे लड़ीं. वहीं 21 रमज़ान 40 हिजरी को ईराक के शहर कूफा की एक मस्जिद में हुआ था. अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम नाम के क्रूर शख्स ने हजरत अली के जहर में डूबी हुई तलवार दिन की पहली नमाज के दौरान सजदे से उठते वक्त आपके सर पर वार किया, जिससे उनकी शहादत हो गई.
पैगंबर मोहम्मद के दामाद
सुन्नी मुस्लिम मान्यताओं के मुताबिक हजरत अली इस्लाम के चौथे खलीफा थे, जबकि शिया मुस्लिम का मानना है कि हजरत अली पहले इमाम हैं. हजरत अली पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई होने के अलावा उनके दामाद भी थे. उनकी शादी पैगंबर मोहम्मद की बेटी हजरत फातमा जे़हरा के साथ हुई. हजरत अली और फातमा के पांच बच्चे थे, जिनमें हजरत हसन, हजरत हुसैन, हजरत ज़ैनब, हजरत कुलसूम और हजरत मोहसिन थे.
हजरत अली का अदल् और इंसाफ
हजरत अली की हुकुमत के दौरान उनके अद्ल यानि उनके इंसाफ की मिसाल दी जाती है. ऐसा बताया जाता है कि जब उन पर हमला करने वाले को उनके सामने लाया गया तो उन्होंने अपने बेटों से कहा कि इसने मेरे सिर पर तलवार से सिर्फ एक वार किया है तो इस पर भी एक ही वार होना चाहिए.
हजरत अली की अदालत का आलम ये था कि जब हजरत अली हुकुमत का काम करते थे तब बैतुल माल का तेल से दिया जलाते थे वहीं जब काम के दौरान उन्हें अपना काम करना होता था तो हुकुमत के दिए को बुझा कर अपना दिया जलाकर काम करते थे. कहा ये भी जाता है कि हजरत अली की चार साल की हुकुमत के दौरान कोई भूखा नहीं सोया, मतलब किसी को राशन या खाने पीने की समस्या नहीं आई.
वैसे तो हजरत अली के अदालत के कई किस्से हैं लेकिन एक मशहूर किस्सा ये है कि एक बार दो महिलाओं ने एक ही बच्चे पर अपना दावा किया, एक ने कहा ये मेरा बेटा तो दूसरी ने कहा ये मेरा बेटा है. मामला हजरत अली तक पहुंचा. पूरा मामला सुनने के बाद हजरत अली ने कहा एक तलवार मंगवाई जाए और इस बच्चे का सिर काट दिया जाए, इसी दौरान जो बच्चे की असली मां थी उसने फौरन कहा कि चाहे बच्चा इसे दे दो लेकिन इसे मत मारो, ये सुनते ही हजरत अली समझ गए कि बच्चे की असली मां कौन है और बच्चा उसी के हवाले कर दिया गया.
गरीब व्यापारी को दिलाया इंसाफ
यह हज़रत अली की हुकुमत के दौर का किस्सा है. ईराक के शहर कूफा के मोहल्ला बनी हमदान से हजरत अली निकल रहे थे कि उन्होंने एक तरफ शोर सुना तो वो उस तरफ मुड़े और देखा कि कुछ लोग जमा हैं. जब उन्होंने जाना कि माजरा क्या है तो पता चला कि एक अमीर आदमी ने एक गरीब व्यापारी से बकरियां ली हैं और बदले में उन्होंने जो पैसे दिए उनमें से कुछ नकली थे. व्यापारी उसे नकली दिरहम लौटाकर असली दिरहम की मांग कर रहा था, जिस पर अमीर शख्स ने उसे थप्पड़ मार दिया. व्यापारी कूफा के बाहर का था, इसलिए वह रो रहा था और लोगों को पुकार रहा था.
इसके बाद हजरत अली ने वहां लोगों को इकट्ठा किया, मामले की जांच की और अमीरजादे को बुलाया साथ ही कुछ गवाह बुलाए गए और दिरहम उनके सामने रख दिए गए. थोड़ी देर के बाद यह पता चल गया कि गरीब व्यापारी की मांग सही थी. हजरत अली ने पहले अमीर शख्स से दिरहम निकलवाए और उन्हें व्यापारी को सौंप दिए. उसके बाद उसने अपने थप्पड़ का बदला लेने के लिए व्यापारी के हाथ में चाबुक दिया, लेकिन गरीब व्यापारी ने कहा मैं इसे माफ करता हूं.
इसके बाद जब अमीर शख्स अपने घर जाने लगा तो उन्होंने कहा, हालांकि व्यापारी ने आपको माफ कर दिया है, अब आप पर हुकुमत की तरफ से मुकदमा चलाया जाएगा. उसे कूफा की मस्जिद में लाया गया, उसके बाद उसके व्यापारी के थप्पड़ के बदले में दस कोड़े मारे गए. इसके अलाव हुकुमत की तरफ से जुर्माना भी लगाया गया.
हजरत अली ने उस अमीर शख्स से कहा कि व्यापारी पराय शहर का है, वह कूफा में परदेसी था, बदला लेने से डरता था. इसके अलावा उनका अपमान भी किया गया है. फिर हुकुमत का वक्त मामले की सुनवाई में ही चला गया, इसलिए, सिर्फ माफी से गुनाह की भरपाई नहीं होगी. हजरत अली ने ये भी कहा कि छूट तब तक है जब मामला हुकुमत तक न आए, अगर कोई मामला हुकुमत के पास आता है तो उस मामले में पूरा इंसाफ किया जाएगा.
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