Chaturmas 2023: हिंदू के साथ ही जैन और बौद्ध धर्म में भी है चातुर्मास का खास महत्व, आप भी जानें इससे जुड़ी ख़ास बातें
Chaturmas 2023: चातुर्मास की शुरुआत गुरुवार 29 जून 2023 से हो रही है. हिंदू धर्म समेत जैन और बौद्ध धर्म में भी चातुर्मास का खास महत्व होता है और इन धर्मों में चातुर्मास के नियमों का पालन किया जाता है.
Chaturmas 2023: पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है और देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त हो जाता है. चातुर्मास की अवधि चार महीने की होती है, जिस कारण इसे चौमासा भी कहते हैं.
इस साल चातुर्मास की शुरुआत गुरुवार 29 जून 2023 से हो रही है और गुरुवार 23 नवंबर 2023 को चातुर्मास समाप्त हो जाएगा. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पूरे चार माह तक क्षीरसागर में विश्राम करते हैं. इन चार महीने तक देव की अनुपस्थिति के कारण कोई भी शुभ मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं होता है.
हालांकि इस बार सावन में अधिकमास लगने के कारण चातुर्मास की अवधि पांच महीने की होगी. हिंदू धर्म में चातुर्मास को महत्वपूर्ण माना गया है. इतना ही नहीं हिंदू धर्म के सभी बड़े तीज-त्योहार और व्रत भी चातुर्मास में ही पड़ते हैं. इसलिए भक्ति-उपासना के लिए चातुर्मास का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है. लेकिन सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी चातुर्मास का विशेष महत्व है.
जैन और बौद्ध धर्म में चातुर्मास का महत्व (Chaturmas 2023 Importance of Jainism and Buddhism)
- चातुर्मास में जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी, साधु-संत सभी ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की अराधना करते हैं. वे एक ही स्थान पर रहकर मंदिर, आश्रम या संत निवास पर जप-तप करते हैं और चातुर्मास के नियमों का पालन करते हैं.
- भगवान महावीर ने चातुर्मास को 'विहार चरिया इसिणां पसत्था' कहकर विहारचर्या को प्रशस्त बताया. चातुर्मास को लेकर महात्मा बुद्ध कहते हैं कि, 'चरथ भिक्खवे चारिकां बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय'. इस वाक्त से उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के लिए 'चरैवेति-चरैवेति' का संदेश दिया है.
- चातुर्मास में ही जैन धर्म का प्रमुख पर्व ‘पर्युषण’ मनाया जाता है. इस पर्व की मान्यता यह है कि, जो लोग पूरे साल भर परंपरा, व्रत आदि नियमों का पालन नहीं कर पाते वे चातुर्मास में पड़ने वाले पर्युषण पर्व में 8 दिनों तक रात्रि भोजन का त्याग करते हैं, ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करते हैं. साथ ही स्वाध्याय, जप-तप, साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रहतें हैं और मांगलिक प्रवचनों का लाभ उठाते हैं.
- जैन और बौद्ध धर्म के लोग चातुर्मास में भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याहकर संयमित जीवन बिताते हैं. इस दौरान वे मंनोरंजन और आराम के साधनों (जैसे टीवी, फ्रिज, कूलर आदि) से दूर रहकर व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करते हैं.
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