भद्रा साया में नहीं किया जाता होलिका दहन, माना जाता है इसे अशुभ, जानें कारण और दहन का मुहूर्त
फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. और चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को होली का रंगोत्सव होता है. इस बार होलिका दहन 17 मार्च को किया जाएगा. वही, 10 मार्च यानी की बीते कल से होलाष्टक लग चुका है.
फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. और चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को होली का रंगोत्सव होता है. इस बार होलिका दहन 17 मार्च को किया जाएगा. वही, 10 मार्च यानी की बीते कल से होलाष्टक लग चुका है. होली से पहले के 8 दिन तक सभी शुभ मांगलिक कार्यों की मनाही होती है. कहते हैं कि इन दिनों में भगवान शिव और श्री हरि की पूजा अर्चना की जाती है. पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन भद्रा का साया है जिसके कारण इस साल होलिका दहन मध्य रात्रि को किया जाएगा.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 17 मार्च दोपहर 1:30 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समापन- 18 मार्च दोपहर 12:47 मिनट तक होगा.
होलिका दहन मुहूर्त- 17 मार्च शाम 06:32 मिनट से रात 08:57 मिनट तक
भद्रा मुख- 17 मार्च रात 1:20 मिनट से 18 मार्च सुबह 12:57 मिनट तक
भद्रा पुंछ- 17 मार्च रात 09:04 मिनट से 10:14 मिनट तक
भद्रा में क्यों नहीं किया जाता होलिका दहन
शास्त्रों में भद्रा को अशुभ बताया गया है. ऐसी मान्यता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है. वहीं, भद्रा पुंछ में होलिका दहन किया जा सकता है, क्योंकि इस समय भद्रा का प्रभाव काफी कम होता है और व्यक्ति को दोष भी नहीं लगता.
इसलिए माना जाता है भद्रा को अशुभ
पुराणों में वर्णन मिलता है कि भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है. और भद्रा का स्वभाव शनिदेव की तरह ही है. ये भी कोध्री स्वभाव की हैं. इसलिए इन्हें नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने काल गणना में एक प्रमुख अंग में विष्टि करण को जगह दी है.ऐसा माना जाता है कि भद्रा हर समय तीनों लोक का भ्रमण करती रहती हैं. इसलिए जब वे पृथ्वी पर होती हैं, तो किसी भी तरह का शुभ कार्य करने की मनाही होती है.
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