Holi 2023 Special, Haji Waris Ali Shah Deva Sharif Dargah: होली का त्योहार देशभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस साल होली या रंगोत्सव का पर्व 08 मार्च 2023 को है. विशेषकर काशी, मधुरा, ब्रज की होली विश्वभर में प्रसिद्ध है. लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी की एक दरगाह में भी अनोखी होली खेली जाती है. इस मजार में होली के दिन हर धर्म के लोग रंगों से सराबोर नजर आते हैं.


सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है देवा शरीफ मजार


‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ मोहम्मद इक़बाल द्वारा लिखी ये पंक्तियां केवल एक पंक्ति नहीं बल्कि भाईचारे की मिसाल है और इसी भाईचारे व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करता है बाराबंकी का हाजी वारिस अली शाह बाबा का देवा शरीफ मजार. यहां की होली खूब प्रसिद्ध है. यह मजार मिसाल है इस बात कि रंगों का कोई मजहब नहीं होता. बल्कि रंगों की खूबसूरती हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. यही कारण है कि यहां हर साल गुलाब और गुलाल से हिंदू-मुस्लिम और सभी धर्म के लोग एक साथ होली खेलते हैं. होली के दिन यहां हिंदू-मुसमान नहीं बल्कि इंसान नजर आते हैं. लोग रंग गुलाल लगाकर फूलों से होली खेलते हुए भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं.


देवा शरीफ दरगाह की अनोखी होली


होली के दिन इस दरगाह में गाजे-बाजे के साथ फूलों की चादर से सजा जुलूस निकाला जाता है. यह जुलूस सुबह 8 बजे कौमी एकता गेट से निकलकर 12 बजे मजार में पहुंचता है. सभी ‘जो रब है वही राम है’ का नारा लगाते हुए मजार पहुंचते हैं. मजार के लोग यहां खड़े रहते हैं और जुलूस का इस्तकबाल करते हैं. यहां देश के कोने-कोने से लोग आकर एकजुट होते हैं और सूफी संत की नगरी वाली अद्भुत व अनोखी होली खेली जाती है.



देवा शरीफ दरगाह में होली का इतिहास


सूफी संत हाजी वारिस अली शाह साहब हर धर्म के प्रति श्रद्धा रखते थे और हर धर्म के लोग उन्हें चाहते थे. सूफी साहब भी हर वर्ग के लोगों को एक समान नजरिए से देखते थे. होली के मौके पर वह अपने दोस्तों के साथ होली खेलने का इंतजार करते थे और साथ में होली खेलते थे. वह चाहते थे कि, बाराबंकी के लोग ऐसे ही एक साथ मिलजुल कर होली खेले. इसलिए उनकी मौत के बाद आज भी यह परंपरा बदस्तूर जारी है.


हाजी वारिस अली शाह के देवा शरीफ मजार का निर्माण भी उनके हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह द्वारा कराया गया था. केवल होली ही नहीं बल्कि मजार के निर्माण काल से ही यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देता आ रहा है. इस मजार में मुस्लिम श्रद्धालुओं से कहीं ज्यादा संख्या में हिन्दू श्रद्धालु आते हैं.


इस मजार में होली खेलने की परंपरा की कमान फिलहाल शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं. होली के अलावा इस मजार में दीपावली के मौके पर भी एकता और भाईचारे की मिसाल देखने को मिलती है. दीपावली के दिन भी हिंदू-मुस्लिम एक साथ मजार को दीपों से रौशन करते हैं.


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