होली पर्व भक्त प्रह्लाद की रक्षा के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. प्रह्लाद के पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यपु ने स्वयं को भगवान घोषित कर विष्णु की उपासना पर प्रतिबंध लगा दिया था. प्रह्लाद हिरण्यकश्यपु का पुत्र होने के बावजूद भगवान श्रीहरि विष्णु का अनन्य भक्त था.


बुआ होलिका के कपटपूर्ण प्रयास के बाद प्रह्लाद के बच जाने से जनमानस में भगवान विष्णु की प्रतिष्ठा और बढ़ गई. समस्त प्रजा होली के उत्सव में रम गई. इसके बाद हिरण्यकश्यपु का अत्याचार और बढ़ा तो भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया. भक्त प्रह्लाद की आस्था की जीत और विष्णु भगवान का नरसिंह अवतार सतयुग की कथा है.


इस प्रकार होली इसके बाद रक्षाबंधन का त्योहार राजा बलि के जरिए देवताओं को पाताल में ले जाने के बाद लक्ष्मी जी द्वारा बलि को भाई मानकर राखी बांधने से शुरू होता है. दीपावली त्रेतायुग में रामराज्य की स्थापना से शुरू होती है. कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की शुरूआत द्वापर युग में कंस के अत्याचारों के दमन के लिए कृष्ण अवतार से आरंभ होती है.


वहीं शिवरात्रि और नवरात्रि पर्व ही होली से पुरातन माने जा सकते हैं क्योंकि ये भी सतयुग में आरंभ हुए हैं. होली से जुड़ी कृष्ण कथाओं ने द्वापर युग में भी प्रसिद्धि पाईं. इससे भ्रम होता है कि होली द्वापर युग का त्योहार है लेकिन होली नन्हे बालक की अगाध का आस्था का सर्वश्रेष्ठ उत्सव है. यह इस बात का प्रतीक है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर हम सब की रक्षा में सदैव तत्पर रहता है. हमें केवल उस पर विश्वास बनाए रखना चाहिए.