फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. होली का त्योहार देशभर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल होली 17 मार्च के दिन मनाई जाएगी. इस दिन होलिका दहन से पहले होली पूजन करने का विधान है. इस दौरान होलिका की अग्नि में घर की सभी समस्याओं को दहन करने की प्रार्थना की जाती है. होलिका पूजन में रोली, धूप, फूल, गुड़, हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल जैसी चीजें अर्पित की जाती है. मान्यता है कि इस दिन होलिका दहन (Holi) की पौराणिक कथा का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और भक्तों की सभी मनाकामनाएं पूर्ण होती हैं. आइए जानें होलिका दहन की कथा.
होलिका दहन की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार होलिका दहन की कथा मुख्य रूप से भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है. कथा के अनुसार विष्णु भगवान के एक भक्त प्रहलाद का जन्म असुर परिवार में हुआ. हिरण्यकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी. वहीं, प्रहलाद किसी दूसरी चीज की चिंता किए बिना भक्ति में लीन रहता था.
प्रहलाद का ये स्वभाव हिरण्यकश्यप पसंद न होने के कारण उसने प्रहलाद को कई यातनाएं दीं. कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की. परन्तु भगवान विष्णु के प्रभाव के कारण वो हमेशा असफलता का ही सामान करना पड़ा. फिर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की बात अपनी बहन होलिका से कही. होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह आग में नहीं जलेगी. इसलिए हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठा कर अग्नि में बैठा दिया.
लेकिन उस अग्नि में प्रहलाद बच गया और होलिका जलकर राख हो गई. तभी से होलिका दहन की प्रथा शुरू हो गई. और इसी खुशी में अगले दिन रंग खेला जाता है. होलिका पूजा के दौरान इस कथा को पढ़ने का विधान है. ऐसी मान्यता है कि अगर ये कथा पूरी श्रद्धा के साथ पढ़ी जाए तो भगवान सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
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