साल की शुरुआत होते ही होली के त्योहार का इंतजार शुरू हो जाता है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा (Falgun Purnima 2022) के दिन होली का पर्व मनाया जाता है. इस बार होलिका दहन 17 मार्च, गुरुवार के दिन किया जाएगा. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन (Holika dahan) के कुछ दिन पहले से ही लोग दहन के लिए लकड़ियां इक्ट्ठी करनी शुरू कर देते हैं.  होली से एक दिन पहले शुभ मुहूर्त के अनुसार  होलिका दहन किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इसमें पवित्र लकड़ियों का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. भूलकर भी इन लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. आइए जानें. 


होलिका दहन में भूलकर भी इस्तेमाल न करें ये लकड़ियां


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन के समय पीपल, आंवला, केले का पेड़, नीम का पेड़, अशोक का पेड़ और बेल का पेड़ की टहनियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.धार्मिक दृष्टिकोण से इन पेड़ों का विशेष महत्व है. इसके अलावा कहते हैं कि हरे-भरे पेड़ या फिर इनकी टहनियों का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए. 


इन पेड़ों की लकड़ियों का करें इस्तेमाल


मान्यता है कि होलिका दहन के समय एरंड और गूलर की सूखी लकड़ियों का इस्तेमाल करना शुभ रहता है. गूलर को बेहद खास माना गया है. कहते हैं कि इस मौसम में गूलर की टहनियां खुद ही सूख कर गिर जाती हैं, इसलिए इसकी टहनियों का इस्तेमाल करना उत्तम रहता है. इसके साथ ही, होलिका दहन में गाय के गोबर के उपले आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है. 



खरपतवार भी कर सकते हैं यूज


ऐसा भी माना जाता है कि होलिका दहन में खरपतवार का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. अगर दहन के समय इसका इस्तेमाल करते हैं, तो इससे हरे पड़ों का काटने से बचा जा सकता है और खरपतवार को होलिका में जलाने से आसपास सफाई भी हो जाती है. 


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