Holika Dahan 2023 Bhadra: होलिका दहन पर भद्रा, क्यों और किस समय लगती है भद्रा? किन कार्यों में बाधक नहीं होती भद्रा, यहां जानें
Holika Dahan 2023 Bhadra: भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है. इस साल होलिका दहन पर भी भद्रा का साया रहेगा. इसलिए होलिका दहन 6 या 7 मार्च कब किया जाएगा, इसे लेकर संशय है.
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Holika Dahan 2023 Bhadra: हिंदू धर्म में होली से पहले होलिका दहन की परपंरा है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है. इस साल होलिका दहन पर भद्रा का साया रहने वाला है. इसलिए होलिका 06 मार्च को जलेगी या 07 मार्च को इसे लेकर संशय है. हालांकि देश के अधिकांश हिस्सों में होलिका दहन 07 मार्च को है और होली 08 मार्च को मनाई जाएगी. ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली से जानते हैं आखिर क्या है भद्रा,क्यों लगती है भद्रा, भद्रा का समय क्या है और भद्रा में कौन से कार्य किए जा सकते हैं और कौन से कार्य वर्जित होते है.
हिंदू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य से पहले भद्रा की समय अवधि के बारे में जाना जाता है, उसके बाद ही निर्णय लिया जाता है कि उस कार्य को करना है या फिर स्थगित करना है. क्योंकि भद्रा काल में कोई भी कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है. इसलिए किसी भी कार्य को करने या वस्तु की खरीदारी करने से पहले ज्योतिष विद्वान द्वारा मुहूर्त जानने के बाद भद्रा के समय को ध्यान में रखकर मुहूर्त का समय निर्धारित किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली के अनुसार, यदि भद्राकाल किसी उत्सव या पर्व के समय होता है तो उस समय उस पर्व से संबंधित कुछ शुभ कार्य भी नहीं किए जा सकते. वैसे तो भद्रा के अर्थ का अनुमान इस शब्द के अर्थ से हो जाता है. इस शब्द के कई अर्थ हैं लेकिन संस्कृत से संबंधित कुछ अर्थ भी हैं. इस शब्द का मतलब है अनिष्टकर बात, बाधा, विघ्न, अपमानजनक बात तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रा एक अशुभ योग होता है. इसलिए पृथ्वी पर इस योग के समय यदि कोई शुभ कार्य किया जाए तो वह नष्ट हो जाता है. इस विष्टि भद्रा के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें कोई शुभ काम नहीं होता है. भद्रा का अर्थ पुराणों में भी देखने को मिलता है.
भद्रा क्या होती हैं?
ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली बताते हैं कि, भद्रा को समझने के लिए पक्ष में आने वाली तिथि में उसके भाग द्वारा इसका पता लगाया जाता है. संक्षेप में बात करें तो प्रत्येक तिथि के दो भागों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है. पक्ष के आधार पर तिथि का वह पहला या दूसरा भाग जिसमें शुभ कार्य करना निषेध माना जाता है, उसे भद्रा या भद्राकाल कहा जाता है. भद्रा को बारह अन्य नामों से भी जाना जाता है. ये बारह नाम हैं-
1.दधि मुखी, 2. भद्रा, 3. महामारी, 4. कालरात्रि, 5. खरानना, 6. विष्टिकरण, 7. महारुद्रा, 8. असुरक्षयकारी, 9. भैरवी, 10. महाकाली, 11. कुलपुत्रिका तथा 12. धान्या.
पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा और होलिका दहन फाल्गुन माह की पूर्णिमा को पड़ती है. इस कारण इन पर्वों के समय भद्रा के समयकाल को ध्यान में रखते हुए इस पर विचार किया जाता है. इस भद्राकाल के लंबे होने पर मुहूर्त के समय पर प्रभाव पड़ता है तथा कई बार कुछ शुभ कार्यों को नहीं किया जाता. पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा सूर्य पत्नी माता छाया से जन्मी थी और शनि देव की बहन थीं, जिसे ब्रह्मा ने सातवें करण के रूप में स्थित रहने के लिए कहा था.
क्यों और किस समय लगती है भद्रा?
ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली के अनुसार, यह जानें तो दिन के दो भागों के अनुसार भाद्र नीचे बताए गए समय पर लगती है. कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तथा सप्तमी के प्रथम भाग को भद्रा कहा जाता है. कृष्ण पक्ष की तृतीया तथा दशमी की तिथि का जो दूसरा भाग होता है उसे भद्रा कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की अष्टमी तथा पूर्णिमा की तिथि के पहले भाग को भद्रा कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की एकादशी तथा चतुर्थी तिथि का जो दूसरा भाग होता है उसे भद्रा कहा जाता है.
भद्रा का सीधा संबंध सूर्य और शनि से होता है. भद्रा के समय अवधि 7 घंटे से 13 घंटे 20 मिनट तक की मानी जाता है. लेकिन विशेष समय पर नक्षत्र व तिथि अनुक्रम या पंचक के आधार पर यह अवधि कम या ज्यादा भी हो सकती है. भद्रा पृथ्वी लोक के साथ-साथ पाताल तथा स्वर्ग लोक तक अपना प्रभाव डालती है. मुहुर्त् चिंतामणि के आधार पर कहा जाता है कि भद्रा का वास चंद्रमा की स्थिति के साथ बदलता रहता है. राशियों के अनुसार चंद्रमा की स्थिति से भद्रा के होने की गणना की जाती है.
यानी चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने पर भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है. चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा कावास स्वर्ग लोक में होता है. चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने पर भद्रा पाताल लोक में वास करती है. चंद्रमा की इस स्थिति के कारण ही भद्रा लगती है. यदि किसी कारणवश भद्रा के समय में कोई शुभ कार्य करना अत्यंत आवश्यक हो यानी उसको स्थगित करना संभव न हो पाए तो उस दिन उपवास रखने का विधान है
मांगलिक कार्यों के उदाहरण कुछ इस प्रकार से हैं, मुंडन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, संस्कार, विवाह संस्कार, रक्षाबंधन, नए व्यवसाय की शुरुआत, रक्षाबंधन आदि. इनमें से कोई भी मांगलिक कार्य करने से पहले मुहूर्त को जानने का यह तात्पर्य है कि उस समय भद्रा न हो. मुहूर्त में भद्रा के उपरांत भी कई प्रकार की गणनाएं की जाती है. जैसे- ग्रहों की अवस्था, नक्षत्र, पक्ष तथा योग आदि को देखा जाता है. लेकिन यह भी जानें कि भद्रा के दौरान किसी दुश्मन को परास्त करने की योजना पर काम करना, हथियार का इस्तेमाल, सर्जरी, किसी के विरोध में कानूनी कार्यवाही करना, जानवरों से संबंधित किसी कार्य को प्रारंभ करने जैसे कार्य किए जा सकते हैं.
कश्यप ऋषि ने भद्रा के समय को अनिष्टकारी प्रभाव वाला बताया है. कहा जाता है इस समय किए गए शुभ कार्यों का भी अशुभ प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है. यदि कोई ऐसी परिस्थिति बनी हो जिसमें भद्रा में शुभ कार्य करना पड़े तो उस दिन उपवास रखें. इसके अलावा भी जरूरी कार्य हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी (2 घंटा) छोड़ देना चाहिए. भद्रा 5 घटी (2 घंटा) मुख में, 2 घटी (48 मिनट) कंठ में, 11 घटी (4 घंटा 24 मिनट) हृदय में तथा 4 घटी (1 घंटा 36 मिनट) पुच्छ में स्थित रहती है.
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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