भारतीय सनातन परंपरा में हर वस्तु और व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है. घर को मंदिर समान माना जाता है. घर को मंदिर मानने से घर में रहने वालों का वाणी व्यवहार संतुलित और प्रभावी बनता है. घर के लोग एक दूसरे के प्रति आदरभाव रखते हैं. घर आए आगंतुक का सम्मान करते हैं. घर में ऐसी कोई बात नहीं की जाती जिससे घर का वातावरण प्रभावित हो और लोगों की मानसिकता में विकृति आए.


घर में सुख शांति की स्थापना से महालक्ष्मी की सहजता बढ़ती है. महालक्ष्मी की कृपा होती है. ऐसे घरों में बड़ों का आदर होता है. मुखिया की बात का महत्व बनाए रखा जाता है. इससे आपसी समन्वय और सामंजस्य स्थापित होता है. परिवार के सदस्य प्रेम और विश्वास से रहते हैं. एक दूसर की मदद करते हैं.


एक कहानी से इसे समझा जा सकता है. एक बार एक व्यक्ति नजदीक के पहुंचे हुए विद्वान के घर गया और सवाल किया कि मुझे शादी करनी चाहिए या नहीं. इस पर विद्वान से पत्नी को दीपक जलाकर लाने को कहा. धूप में विद्वान की पत्नी को दीपक जलाकर लाता देख प्रश्नकर्ता को हैरानी हुई.


उसने इस घटना को समझना चाहा तो विद्वान बोले कि विवाह में इतना सामंजस्य होना चाहिए. यदि एक कोई बात कह रहा है तो उस पर तुरंत प्रत्युत्तर न देकर उसे पूरा करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इससे घर देवताओं के निवास के योग्य बनता है अर्थात् वह मंदिर बन जाता है. मंदिर में महालक्ष्मी का आगमन सहज होता है.