Mahabharat : महाभारत युद्ध के दौरान कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी तो पांडवों के पास मात्र सात अक्षौहिणी सेना थी. इसके बावजूद पांडव कौरवों को सर्वनाश करते जा रहे थे. इससे चिंतित दुर्योधन भीष्म से नाराजगी जताते हैं. आरोपों से आहत भीष्म कहते हैं कि अगले दिन दिव्य पांच बाणों से पांचों पांडव खत्म कर देंगे, मगर ठीक इसी रात पूर्व में अर्जुन को दिए एक वरदान के चलते ये पांचों तीर वो उन्हें दे बैठता है, जिसके चलते पांडवों की जान बच गई, लेकिन दुर्योधन खुद अपनी मृत्यु की पटकथा लिख बैठा. जानते हैं कैसे थे वे दिव्य बाण और दुर्योधन ने क्यों अपने शत्रु को दिया था वरदान.


महाभारत में अपनी सेना को गाजर-मूली की तरह कटते देखकर हार से घबराया दुर्योधन बौखला उठता है. वह भड़कते हुए अपने सेनापति पितामह भीष्म के पास जाकर उन पर पांडवों से अधिक प्रेम करने का आरोप लगाते हुए दोषारोपण करता है कि वह इसी कारण युद्ध का ठीक से संचालन नहीं कर रहे हैं. दुर्योधन के मिथ्या आरोपों से भीष्म क्रोधित हो उठते हैं और अपने तुणीर यानी तरकश से सोने के पांच तीर निकालकर मंत्रों अभिमंत्रित कर देते हैं.


वह दुर्योधन को बताते हैं कि कल वह इन्हीं पांच बाणों से पांडवों का वध कर देंगे. भीष्म पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाने के कारण वह उनसे पांचों तीर यह कहते हुए ले लेता है कि यह उसके पास पूरी रात सुरक्षित रहेंगे, सुबह वह खुद उन्हें सौंप देगा. मगर इसी रात अर्जुन उससे आकर वह तीर मांग ले जाते हैं और उसकी योजना धरी की धरी रह जाती है.


जान बचाने पर दुर्योधन ने अर्जुन को दिया था वरदान
युद्ध शुरू होने से पहले सभी पांडव जंगल में रहे थे. जहां पांडव रह रहे थे, वहां सरोवर था. दुर्योधन भी अपने निवास के लिए सामने ही शिविर लगा दिया. एक दिन दुर्योधन सरोवर से स्नान कर आता है, तो अचानक स्वर्ग से गंधर्व आ जाते हैं. जिनसे स्नान को लेकर दुर्योधन की लड़ाई हो जाती है. युद्ध छिड़ने पर दुर्योधन हार जाता है. गंधर्व राजकुमार दुर्योधन को बंदी बना लेते हैं. इसी बीच अर्जुन आ जाते हैं और दुर्योधन से शत्रुता भूलकर गंधर्व राजकुमार को परास्त कर बड़े भाई को छुड़ा लेते हैं. लज्जित दुर्योधन अर्जुन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए वरदान मांगने को कहता है. इस पर अर्जुन कहते हैं कि वे समय आने पर अवश्य मांग लेंगे. 


कृष्ण पता लगते ही अर्जुन को दिलाते हैं याद
भीष्म के पांच बाणों की जानकारी कृष्ण को लग जाती है तो वह अर्जुन को दुर्योधन के वरदान की याद दिलाकर उसी रात वरदान के रूप में पांचों बाण मांगने को कहते हैं. अर्जुन उसी समय दुर्योधन के पास जाते हैं और वरदान का स्मरण कराते हुए तीर मांगते हैं. अर्जुन को सुनकर दुर्योधन हैरान रह जाता है लेकिन अपने वचन और क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए वह अभिमन्त्रित पांचों तीर अर्जुन को दे देता है.


इस प्रकार पांडवों के प्राणों की रक्षा होती हैं. कहा जाता है कि तीर अर्जुन को देने के बाद दुर्योधन फिर पितामह के पास जाता है और फिर तीरों को अभिमंत्रित करने को कहता है, लेकिन भीष्म असमर्थता जताते हैं और युद्ध एक नए मोड़ पर चला जाता है.