Mahabharat : महाभारत को धर्म और अधर्म के बीच युद्ध माना गया है. ऐसे में लड़ाई छिड़ने से पहले कुछ नियम कानून बनाए गए, सोचा गया था कि दुनिया के इस सबसे बड़े युद्ध में कोई भी अन्यायपूर्ण संघर्ष नहीं होगा. इसे तय करने के लिए दोनों पक्षों ने पितामह भीष्म से प्रार्थना की, लेकिन पूरे युद्ध के दौरान न सिर्फ इन नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं, बल्कि छलकपट की पराकाष्ठाएं पार कर दी गईं. आइए जानते हैं भीष्म ने युद्ध के लिए क्या नियम बनाए थे.


समय : रोजाना युद्ध सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही लड़ा जाएगा. सूर्यास्त के बाद कोई भी पक्ष दूसरे के साथ किसी भी रूप में युद्ध का संचालन नहीं करेगा.



व्यवहार: युद्ध समाप्ति के बाद सभी छल-कपट छोड़कर एक दूसरे से प्रेम का व्यवहार करेंगे.


योद्धा : एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा. रथी रथी से, हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।


प्रतिबंध : भय से भागते हुए या शरण में आए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा।


निहत्था: जो वीर निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा।


सेवक: युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा।


मैदान में उतरकर युद्ध से पहले युयुत्सु ने बदला खेमा
पहले दिन जब कृष्ण दोनों सेनाओं के मध्य खड़े होकर अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तभी भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। जो भी योद्धा खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिस ओर से चाहे युद्ध कर सकता है. यह सुनते ही धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल छोड़कर पांडव शिविर में आ जाता है. यह युधिष्ठिर के क्रियाकलापों की सफलता थी. श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त शंख बजाकर युद्ध की घोषणा कर दी. पहले दिन ही भयंकर संहार हुआ और करीब 10 हजार सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए.