महाभारत का युद्ध धर्म और अर्धम के बीच लड़ा गया था. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. युद्ध के दौरान जब अर्जुन असमंजस की स्थिति में आ गए तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह श्लोक सुनाया-


न ही लक्ष्मी कुलक्रमज्जता, न ही भूषणों उल्लेखितोपि वा।
खड्गेन आक्रम्य भुंजीत:, वीर भोग्या वसुंधरा।।


इसका अर्थ है कि न तो लक्ष्मी निश्चित कुल से क्रमानुसार और ना ही आभूषणों पर उसके स्वामी का चित्र अंकित होता है. खड्ग और शक्ति के बल पर पुरुषार्थ करने वाले ही विजयी होकर रत्नों को धारण करने वाली धरती को भोगते है. इस श्लोक में वीरता के बारे में बताया गया है. जिसका अर्थ है कि वीर पुरुष ही धरती पर संसाधनो का उपभोग करते हैं. यह श्लोक जीवन के श्रेष्ठ दर्शन को भी दर्शाता है. व्यक्ति जितना कुशल और निपुण होगा, वह उतना ही शक्तिशाली होगा. व्यक्ति जितना शक्तिशाली होगा वो उतनी ही वस्तुओं का उपभोग कर सकेगा.


गीता के इस श्लोक की विशेष बात ये है कि यहां शक्तिशाली होने का अर्थ किसी दूसरे का अहित करना नहीं है. बल्कि इस धरती पर आने के बाद अपनी खुद की क्षमताओं का पूरी तरह से उपयोग करना है. यानि व्यक्ति जो करना चाहता है उस क्षेत्र में वीर बनिए. क्योंकि निपुण व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है. लेकिन वीरता किसी को गिराकर बड़ा बनने में नहीं है. व्यक्ति को स्वयं में इतना विशाल और गंभीर हो कि लोग उसकी शक्ति को समझें और सम्मान प्रदान करें.


पीएम मोदी ने क्या कहा
नरेंद्र मोदी ने जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि वीर भोग्य वसुंधरा. यानी वीर अपने शस्त्र की ताकत से ही मातृभूमि की रक्षा करते हैं. ये धरती वीर भोग्या है. इसकी रक्षा-सुरक्षा को हमारा सामथ्र्य और संकल्प हिमालय जैसा ऊंचा है. ये सामर्थ्य और संकल्प में आज आपकी आंखों पर, चेहरे पर देख सकता हूं. आप उसी धरती के वीर हैं, जिसने हजारों वर्षों से अनेकों आक्रांताओं के हमलों और अत्याचारों का मुंहतोड़ जवाब दिया है. हम वो लोग हैं जो बांसुरीधारी कृष्ण की पूजा करते हैं, वहीं सुदर्शन चक्रधारी कृष्ण को भी अपना आदर्श मानते हैं.


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