Indian Martial Arts, Malla Yuddha: आज दुनियाभर में मार्शल आर्ट्स प्रचलित है. मार्शल आर्ट्स को सेल्फ डिफेंस के साथ ही युद्ध कला के लिए इस्तेमाल किया जाता है. प्राचीन भारत में मार्शल आर्ट्स का इतिहास काफी पुराना रहा है. माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति एशिया में हुई है. इंबुआन रेसलिंग, मुष्टि युद्ध, वरमा कलाई, नियुद्ध, मल्ल युद्ध और कुट्टु वारासाई जैसे युद्ध हैं,जिन्हें प्राचीन भारत का मार्शल आर्ट्स कहा जाता है.


इनमें मल्ल युद्ध की उत्पत्ति भारत में हुई है और इसका वर्णन कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. जानते हैं मल्ल युद्ध के इतिहास, तकनीक और इसके बारे में विस्तार से.


मल्ल युद्ध और इसका इतिहास


मल्ल युद्ध की उत्पत्ति भारत में हुई है. इसे प्राचीन भारत का मार्शल आर्ट्स कहा जाता है. इसे द्वंद्व कला की श्रेणी में रखा गया है. द्वंद्व कला वाले सभी युद्ध बिना हथियार और अस्त्र-शस्त्र के लड़े जाते हैं. इस युद्ध में हथियार नहीं बल्कि शारीरिक बल और बुद्ध की अधिक आवश्यकता होती है. इतिहासकारों की माने तो भारत में ‘आर्य सभ्यता’ के समय से ही मल्ल युद्ध की कला प्रचलित रही है.


मल्ल युद्ध में मल्ल जाति के लोग निपुण थे. मल्ल जाति का उल्लेख मनुस्मृति में लिछिवी नाम से है. ये जाति वाले इस युद्ध कला में इतने निपुण थे कि इन्हें कोई हरा नहीं सकता था. बचपन से ही इस जाति को लोग इस कला को सीखना शुरू कर देते थे और इसका निरंतर अभ्यास चलता था और युवाकाल तक ये मल्ल युद्ध कला में पारंगत हो जाते थे.


महाभारत और रामायण काल में मल्ल युद्ध


मल्ल युद्ध का वर्णन महाभारत और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. इस युद्ध के बारे में लिखित प्रमाण महाकाव्य रामायण में मिलता है. इसके अनुसार लंकापति रावण और किष्किन्धा के सम्राट वानरराज बाली के मध्य मल्ल युद्ध हुआ था, जिसमें रावण की हार हुई थी. वहीं बात करें महाभारत काल की तो श्रीकृष्ण, बलराम, भीम और जरासन्ध जैसे योद्धाओं द्वारा मल्ल युद्ध की कला को दर्शाया गया है. इसके अनुसार भीम और जरासंध का युद्ध मल्ल युद्ध था. साथ ही द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा राजा कंस का वध मल्ल युद्ध से ही करने का स्पष्ट वर्णन मिलता है.


मल्ल युद्ध पर आधारित ग्रंथ


मल्ल युद्ध पर आधारित ‘मानसोलासा’ और ‘ज्येस्थिमल्ला’ ग्रंथ है. चालुक्य वंश के राजा सोमेश्वर तृतीय (ई. 1124 – 1138) के समय जो ग्रंथ लिखा गया उसे ‘मानसोलासा’ कहा जाता है जोकि युद्धकला पर आधारित है. मानसोलासा ग्रंथ को ‘चालुक्य वंश’ का शाही ग्रंथ माना गया है. इसमें ‘मल्ला विनोद’ नाम के अध्याय में उल्लेख है कि मल्ल युद्ध की कला को सीखने वाले व्यक्ति का व्यायाम और भोजन शैली कैसी होनी चाहिए. इस युद्ध कला के दांव-पेंच के साथ कठिन युद्ध शैली की नीतियों के बारे में भी बताया गया है.


वहीं तेरहवीं शताब्दी में गुजरात में मल्ल युद्ध पर आधारित ग्रंथ लिखा गया जिसे ज्येस्थिमल्ला कहा जाता है. इसे गुजरात के एक ब्राह्मण द्वारा लिखा गया था. ब्राह्मण स्वयं भी इस कला में निपुण थे और वे क्षत्रिय, राजाओं व सैनिकों को इसका प्रशिक्षण देते थे.


मल्ल युद्ध की तकनीक


प्राचीन भारत की मल्ल युद्ध की कला आज भी कई रूपों में जीवित है. यह एक विशेष प्रकार की युद्ध कला है. वर्तमान में देश के कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा और पंजाब जैसे कई प्रदेशों में यह लोकप्रिय है. इसके अलावा जावा, मलेशिया, थाईलैंड, चीन, जापान आदि जैसे देशों में भी मल्ल युद्ध की कला अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है.


मल्ल युद्ध में प्रेशर पॉइंट पर स्ट्राइक, पंच, चोक, ग्रैपलिंग जैसी तकनीकों का प्रयोग होता है. इसे हनुमंती, जंबुवंती, जरासंधी और भीमासेनी चार तरह के वर्गों में बांटा गया है. हनुमंती में तकनीकी श्रेष्ठता, जंबुवंती में विरोधी पर लोक और होल्ड्स लगाकर सबमिशन कराने, जरासंधी में विरोधी के जॉइंट्स को तोड़ने और भीमासेनी में ताकत पर जोर दिया जाता है.


ये भी पढ़ें: Ancient History: गैलीलियो को किस खोज के लिए मिली इतनी कठोर सजा, मौत के 350 साल बाद आखिर क्यों मांगनी पड़ी माफी






Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.