Indira Ekdashi 2021 Vishnu Chalisa: हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत (Ekadashi Vrat In Hindu Dharam) का विशेष महत्व है. सभी व्रतों में सबसे कठिन व्रतों में से एक होता है एकादशी का व्रत. हर एकादशी के व्रत का अपना अलग महत्व होता है. अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी (Ashwin Month Ekadashi) को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में आने के कारण इस एकादशी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. मान्यता है कि इंदिरा एकादशी के दिन व्रत और पूजन करने से इसका फल पितरों को प्राप्त होता है. कहते हैं कि इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से पितरों को मुक्ति मिलती है. व्रत रखने से उन्हें संतुष्टी प्रदान होती है. इतना ही नहीं, इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. बता दें कि इस साल 2 अक्टूबर, शनिवार के दिन इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu Puja On Ekadashi) को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी (Maa Laxmi) की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान विष्णु का व्रत और पूजा आदि करके विष्णु चालीसा का पाठ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है. वहीं, एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
(Shri Vishnu Chalisa Path) श्री विष्णु चालीसा पाठ
।।दोहा।।
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
।।चौपाई।।
नमो विष्णु भगवान खरारी,
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत,
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत,
बैजन्ती माला मन मोहत ॥
शंख चक्र कर गदा विराजे,
देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण,
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण,
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,
तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा,
रावण आदिक को संहारा ॥
आप वाराह रूप बनाया,
हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया,
चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया,
रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया,
असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया,
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया,
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया,
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया,
उसही कर से भस्म कराया ॥
असुर जलन्धर अति बलदाई,
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई,
कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी,
बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी,
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
देखत तीन दनुज शैतानी,
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी,
हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे,
हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे,
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
हरहु सकल संताप हमारे,
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे,
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चाहता आपका सेवक दर्शन,
करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन,
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण,
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन,
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण,
कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई,
हर्षित रहत परम गति पाई ॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई,
निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ,
भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ,
निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै,
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
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