Mahima Shanidev ki : न्यायकर्ता शनिदेव ने पहला न्याय कर दिया था, लेकिन महादेव के आदेशानुसार इंद्र या शुक्राचार्य यह बात उजागर नहीं कर सकते थे. ऐसे में न्यायसभा में इसका लाभ उठाकर इंद्र ने शुक्राचार्य को अकेले दोषी ठहराने का प्रयत्न किया, लेकिन शनिदेव ने न्यायकर्ता की भूमिका में आकर उनके कर्मों का फल अंतत: दे दिया. भरी सभा में अपमान के बाद इंद्र शनि से बदला लेने को आतुर हो गए.
न्याय सभा में मां छाया के चरणों में अपना मुकुट रखने की सजा पाए इंद्र ने शनिदेव को उनकी मां से ही दूर करने का कुचक्र रच डाला. इंद्र ने देव पुत्रों को जिम्मेदारी सौंपने के लिए देव गुरु बृहस्पति के जरिए एक प्रतियोगिता के आयोजन का ऐलान कर दिया. इसमें आमंत्रित करने के लिए खुद सूर्यलोक पहुंचे, जहां सूर्यदेव के पुत्र के तौर पर उन्होंने अग्रज यम के बजाय शनिदेव को भाग लेने का आग्रह किया, लेकिन यम ने इसे अपना अपमान माना और खुद इस कठिन प्रतियोगिता में भाग लेने का हठ किया. शनिदेव ने बड़ा भाई होने के चलते इस प्रतियोगिता में सम्मिलित होने का पहला अधिकार यम को ही दिए जाने का समर्थन तो किया, लेकिन इंद्र के उकवावे और पिता के कहने पर वह तैयार हो गए.
छह माह परिवार से रखनी थी दूरी
इंद्र को पता चल चुका था कि शनिदेव मां छाया को किसी हालत में खुद से दूर नहीं कर सकते हैं. ऐसे में इंद्र ने चाल चली कि प्रतियोगिता में भाग लेने वाले को छह माह अपने परिवार और घर से पूरी तरह दूरी बनानी होगी, लेकिन इधर, मां छाया के पास महज तीस दिन होने के चलते वह शनि को एक दिन के लिए भी खुद से दूर नहीं होने देने चाहती थीं. मगर इंद्र की चाल ने दोनों को चिंता और कष्ट में डाल दिया.
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