Raksha Bandhan : इंद्र ने तप से मिला रक्षासूत्र बांधकर रोका दानवों का प्रकोप, जानिए किस्सा
रिश्तों को स्नेह के धागों से जोड़ने की ऐसी परंपरा, जिसके शुरू होने की कई किवदंतियां हैं. जानकार हैरानी होगी कि रक्षाबंधन पर्व भाई-बहन ने नहीं, पति-पत्नी ने शुरू किया था.
RakshaBandhan : पुराणों के मुताबिक एक बार दानवों ने इंद्रलोक पर कब्जा करने के लिए देवताओं पर आक्रमण किया तो अपनी शक्ति से दानवों ने देवताओं को लगभग हराने की स्थिति में ला दिया. यह देखकर खुद असुरराज पुलोमा की पुत्री और देवराज इंद्र की पत्नी शुचि बेहद घबरा उठीं. उन्होंने पति इंद्र के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर तप शुरू कर दिया. इससे उन्हें फल के तौर पर एक रक्षासूत्र मिला, जिसे शनिदेव ने श्रावण पूर्णिमा के दिन देवराज की कलाई पर बांध दिया. मान्यता है कि इस रक्षासूत्र के बांधते ही देवताओं की शक्ति चार गुना हो गई और भयंकर युद्ध में देवताओं ने दानवों को बुरी तरह रौंदकर विजयश्री प्राप्त की.
लक्ष्मीजी ने पति की रक्षा के लिए वामन को बांधी राखी
वामन पुराण की मान्यता के अनुसार जब विष्णुजी ने राजा बलि से उनका सबकुछ तीन पग में ही ले लिया. सिर पर पांव रखने से बलि पाताल में धंस गए. मगर उन्होंने वरदान के तौर पर भगवान विष्णु से उसके पाताल लोक में रहने की प्रार्थना की. मजबूरन विष्णुजी उनके साथ पाताल में जाना पड़ा, लेकिन इससे लक्ष्मीजी अत्यधिक व्याकुल हो गईं और वामन से भगवान को छुड़ाने के लिए रूप बदकर पातालपुरी जा पहुंचीं. यहां उन्होंने वामन को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया. वामन ने रक्षा सूत्र बांधने के एवज में कुछ मांगने को कहा तो लक्ष्मीजी ने चतुराई से विष्णु को बैकुंठ भेजने की मांग रख दी. बहन की इच्छा देखते हुए वामन ने विष्णुजी को बैंकुठ जाने दिया. साथ ही यह वादा भी लिया कि चतुर्मास अवधि में विष्णुजी पाताल में ही निवास करेंगे. कहा जाता है कि तब से विष्णुजी चार माह तक पाताल में ही निवास रहते हैं.
मंत्र उच्चारण के साथ बांधें राखी
पुराणों के अनुसार रक्षासूत्र उन सभी लोगों की कलाई पर बांधा जा सकता है, जिनकी आप रक्षा करना चाहते हैं. ध्यान रखने वाली बात है कि सिर्फ रक्षासूत्र बांधने से लाभ नहीं मिलता. इसे बांधते समय मंत्रों का सही उच्चारण भी जरूरी है.
राखी मंत्र :
येन बद्धो बली राजा, दानवेंद्रो महाबलः!
तेनत्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! माचल! माचल!!
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