Mahima Shanidev Ki: न्यायाधिकारी बनने के लिए शनिदेव को करने पड़े ये त्याग
जगत में सभी को उनके कर्मों का फल देकर न्याय करने के लिए महादेव (Mahadev) ने शनिदेव (Shanidev) की उत्पत्ति की, लेकिन उन्हें न्यायाधिकारी बनने के लिए कई त्याग भी करने पड़ें, जानते हैं रोचक कथा.
Mahima Shanidev Ki: सूर्यपुत्र शनिदेव ने सृष्टि के कर्मफलदाता के तौर पर जन्म लिया, लेकिन एक न्यायाधिकारी बनने के लिए उन्हें खुद कुछ त्याग करने पड़े. पौराणिक कथाओं के अनुसार खुद महादेव ने श्रीहरि विष्णुजी से कहा था कि शक्तिपुंज के तौर पर सूर्य और छाया से जन्मे शनि को न्यायाधिकारी बनने के लिए खुद से जुड़े कुछ सबसे बड़े त्याग करने होंगे.
ऐसे में जब चक्रवात निर्माण और देवविश्वकर्मा के भवन पर आक्रमण का दोषी खोजने के लिए सूर्यदेव ने न्यायसभा बुलाई तो देवराज इंद्र ने शनिदेव को देवपुत्र होने का हवाला देकर देवताओं के पक्ष में न्याय पाने का प्रयास किया. ऐसे में कर्मफलदाता ने इंद्र और देवगुरु शुक्राचार्य दोनों को चेताया था कि वह न देवों के साथ हैं न दानवों के, वह सिर्फ न्याय की तरफ हैं. वह अपनी मां को नुकसान पहुंचाने वाले की पहचान कर न्याय करेंगे, जिसकी सजा खुद न्याय सभा तय कर देगी. यह जानकर खुद पिता सूर्यदेव ने मां छाया को शनि के न्यायसभा में पहुंचने पर भस्म कर देने की चेतावनी दी थी. ऐसे में जब मां छाया ने शनिदेव को रोकने का प्रयास किया तो खुद शनिदेव ने उन्हें न्याय के सिद्धांत और उसके मूल्यों के जरिए सभा में अपनी मौजूदगी को आवश्यक बताया. शनि की बातों को मां छाया समझ चुकी थीं. ऐसे में उन्होंने न्यायसभा में शनि को जाने की आज्ञा दे दी.
मां के आशीर्वाद से शनि बने न्यायाधिकारी
पति सूर्यदेव की शनि को न्यायसभा में आने पर असुरों का पक्षधर साबित होने की सूरत में भस्म करने की चेतावनी ने मां छाया को गहरी चिंता में डाल दिया था. मगर शनिदेव के समझाने पर वह मान गईं और उन्हें न्यायधिकारी के तौर पर अपनी पहचान बनाने के लिए न्यायसभा में जाने की इजाजत दे दी. छाया ने कहा कि सृष्टि में कोई भी मां अपने पुत्र की अपनी पहचान से सबसे प्रसन्न होती है, ऐसे में वह शनिदेव को सूर्यदेव के पुत्र के बजाय न्यायाधिकारी के तौर पर पहचान मिलने से अधिक प्रसन्न हुईं.
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