International Day of Forests 2023: रामजी का वनवास हो या ऋषि-मुनियों का तप, सनातन धर्म में सदियों से रहा है वन का महत्व
International Day of Forests 2023: 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाता है. सनातन धर्म की परंपराओं में सदियों से वन का महत्व रहा है. ऋषि-मुनि और संत सभी तप और ज्ञान की खोज में वन की ओर गए.
International Day of Forests 2023, Importance of Forest in Hinduism: हर साल 21 मार्च के दिन को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन वनों के महत्व के बारे में लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इस दिन दुनियाभर में वनों, पेड़-पौधों और वृक्षारोपण आदि से संबंधित गतिविधियों का आयोजन किया जाता है.
28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव जारी कर 21 मार्च के दिन को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस मनाए जाने की घोषणा की. भले ही साल 2012 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 21 मार्च को वन दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन सनातन हिंदू धर्म की संस्कृति और परंपराओं में सदियों से ही वन का महत्व रहा है. फिर चाहे वचन धर्म निभाने के लिए भगवान राम का माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ वनवास जाना हो या ऋषि-मुनिया और साधु-संतों का तप और ज्ञान की खोज में वन की ओर जाना.
धर्म शास्त्रों और ग्रंथों में भी वन के महत्व को बताया गया है
मनुस्मृति के अनुसार- यावत् भूमण्डलम् धन्त् समग्र वन काननम्। तावत तिष्ठति मेदिन्यम् संतति पुत्र पौत्रिकी।।
अर्थ है- जब तक पृथ्वी पर वन्य जीवों से संपन्न वन हैं तब तक धरती मानव वंश का पोषण करती रहेगी.
महाभारत के उद्योगपर्व के अनुसार- नस्या द्वान मृते व्याघ्रान व्याघ्रान स्युर्ऋते वनम्। वनहि रक्षति व्याघ्र व्याघ्रान रक्षति काननम्।।
अर्थ है- बाघों के बिना वन की रक्षा नहीं हो सकती और वन के बिना बाघ भी नहीं रह सकते. क्योंकि बाघ वन की रक्षा करते हैं और वन बाघों की.
मत्स्य पुराण में एक वृक्ष की तुलना मानव के दस पुत्रों से करते हुए कहा गया है-
दशकूप समा वापी, दशवापी समो हृदः।
दशहद समः पुत्रो दशपुत्र समोठ्ठम्:।।
ऋषि मुनियों के अनुसार- पृथ्वी का आधार ही जल और वन है. इसलिए पृथ्वी की रक्षा के लिए जल और वन को महत्वपूर्ण माना गया है. वन को तो ऋषियों ने आनंददायक बताते हुए कहा है- 'अरण्यं ते पृथिवी स्योनमस्तु'. हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण आश्रमों में ब्रह्माचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का सीधा संबंध भी वन से ही होता है.
सनातन हिंदू धर्म में वन का महत्व
वन संपदा है पूजनीय: हिंदू धर्म परंपरा में सदैव ही वृक्षारोपण और वृक्षों की पूजा का महत्व है. लेकिन आज भौतिक युग में धड़ल्ले से पेड़-पौधों की कटाई हो रही है, जिस कारण वन समाप्त होते जा रहे हैं. वैश्विक वनों की कटाई खतरनाक दर पर जारी है. मानव पेड़-पौधों को काटकर वनों को नष्ट करने में लगा हुआ है. लेकिन वनों से पेड़ों को काटकर मानव खुद कब तक बच सकता है, इसके बारे में हम नहीं सोचते. जबकि वन की संपदाएं हिंदू धर्म के लिए पूजनीय है. वन संपदाओं को सुरक्षित रखने के लिए हिंदू धर्म में कई उपाय भी बताए गए हैं.
साधु-संत और ऋषि-मुनि सभी वन की ओर गए
साधु-संत और ऋषि-मुनि सभी जप-तप और ज्ञान की खोज के लिए वन की ओर इसलिए गए क्योंकि वे एकांत चाहते थे. एकांत में रहकर ही वे आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त कर सके. केवल पौराणिक काल ही नहीं बल्कि आधुनिक काल के भी अनेक साधु संत योगी सभी पर्वत और वन में ही तपस्या के लिए रहते हैं.
बुद्ध को भी वन में हुई ज्ञान की प्राप्ति
बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध भी सांसारिक और पारिवारिक मोह का त्याग कर वन चले गए. सालों कठोर तपस्या के बाद बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई.
कैकेयी ने राम के लिए क्यों मांगा 14 साल का वनवास
माता कैकेयी ने राजा दशरथ से रामजी के लिए 14 साल का वनवास मांगा. 14 वर्ष का वनवास मांगकर कैकेयी ने यह समझाया कि, यदि व्यक्ति युवावस्था में चौदह यानी पांच ज्ञानेन्द्रियां ,पांच कर्मेन्द्रियां सहित मन, बुद्धि, चित और अहंकार को वनवास यानी वन में एकांत कर आत्मा के वश में रखेगा तभी अपने भीतर के घमंड और रावण को मार पाएगा.
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