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Sufism: मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि, हज़रत बाबा बुल्ले शाह ने क्यों कही ये बात?

Sufism: ऐसे विद्वान सूफी संत, जिन्हें इस्लाम और सूफी दर्शन का गहन ज्ञान था. अपने अनुभवों से रचनाओं को जीवित कर दिया, जिन्हें दुनिया बाबा बुल्लेशाह (Baba Bulleh Shah) के नाम से जानती है.

Sufism: पंजाब (Panjab) की मिट्टी में जन्मे बाबा बुल्ले शाह (Baba Bulleh Shah) भारतीय सूफी संत परंपरा के ऐसे महान कवि थे, जिनका नाम सदैव सूरज की तरह चमकता रहेगा. बुल्ले शाह ऐसे सूफी संत हैं जिनकी ख्याति देशभर में फैली हुई है.

बाबा बुल्ले शाह का मूल नाम अब्दुल्लाशाह था. लोग इन्हें साईं बुल्ले शाह या हजरत बुल्ले शाह भी कहते थे. इनकी जन्मतिथि को लेकर विद्वानों के बीच अलग-अलग मतभेद हैं. इनके पिता शाह मुहम्मद को अरबी, फारसी और कुरान का बढ़िया ज्ञान था. वैसे तो कई सूफी संत (Sufi) हुए, जिसमें बुल्ले शाह की सूफी शायरी और कविताएं मील का पत्थर साबित हुईं.


Sufism: मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि, हज़रत बाबा बुल्ले शाह ने क्यों कही ये बात?

वो शायरी (Shayari) और कविताएं ऐसे लिखा करते थे जैसे मानो इल्म की कलम को डुबोकर और ईमान को नाप-तोलकर लिखा हो. इसलिए आज सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी बुल्ले शाह (Baba Bulleh Shah) की शायरी और कविताएं अमर हैं. इनकी रचनाएं आज भी शिद्दत के साथ पढ़ी, गाईं या गुनगुनाई जाती हैं.

बुल्ले शाह ने अपनी कलम से कई शेर और कविताएं लिखीं, जिसमें एक चर्चित रचना कविता थी- मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि... हजरत बुल्ले शाह की यह कलाम इसलिए भी खास है, क्योंकि इसका गहरा अर्थ है और इससे महत्वपूर्ण सीख भी मिलती है. आइये जानते हैं बुल्ले शाह की इस रचना का अर्थ-

मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि, भाणवे सौ सौ जुम्मे पढ़ाइए...
अर्थ: यह मक्का जाने से खत्म नहीं होता, भले ही आप सौ बार प्रार्थना क्यों न कर लें.

गंगा गेयान गैल मुकदी नहीं... भाणवे सौ सौ गोटे खाइये...
अर्थ: यह गंगा में जाने से भी खत्म नहीं होता भले ही आप इसमें सौ बार स्नान कर लें.

बुल्ले शाह गल ताइयाँ मुकदी... जे मैं नू मन्नो गवैये...
अर्थ: बुल्ले शाह! यह तभी खत्म होगा, जब आप अपने दिल से अहंकार को खत्म करते हैं.

सर ते टोपी ते नियत खोटी... लैना की टोपी सर धर के?
अर्थ: धर्म के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए आप अपना सिर ढकते हैं. लेकिन जब इरादे नेक न हो तो, सिर ढकने से आपको कुछ हासिल होगा.

चिल्ले कीता पर रब्ब न मिलया...लैना की चिल्लेयां विच वर के?
अर्थ: आपको 40 दिनों तक उपवास रखने के बाद भी रब नहीं मिले, फिर आपको उपवास से क्या हासिल होगा.

तस्बीह फिरी पर दिल न फिरेया... लैना की तस्बीह हाथ फेर के?
अर्थ: तुम तस्बीह (मनका) के इर्द-गिर्द गए लेकिन अपने दिल में कभी नहीं गए. जपने वाले माला या मनके को हाथ में रखकर फिर तुम्हें क्या हासिल हुआ.

बुल्लेया जाग बिना दूध नै जमदा... ते भांवे लाल होवे कठिन कठिन के...
अर्थ: बुल्ले शाह! दूध तब तक दही नहीं बनेगा जब तक वह सुसंस्कृत न हो जाए. आप इसे हमेशा उबालते रह सकते हैं.

मुंह आई बात ना रेहेंदी ए...
अर्थ: जो मैं सच में अनुभव करता हूं उसे कहने से बचना काफी मुश्किल है.

झूठ आखां ते कुज बचदा ए, सच आखां ते खराब मचादा ए
अर्थ: अगर मैं झूठ बोलता हूं तो कुछ बचा लेता हूं. क्योंकि सच बोलने से तबाही मचती है... 

दोवां गल्लां तो जी जचदा ए, जच जच के जिभन केहंदी ए
अर्थ: मेरा दिल दोनों स्थितियों से डरता है. मेरी जुबान घबराकर बोलती है..

मुंह आई बात न रेहेंदी ए.. 
अर्थ: जो मैं महसूस करता हूं उसे कहने से बचना मुश्किल है.

जिस पाया भेट कलंदर दा.
अर्थ: वह जो दरवेश का रूप लेता है.

राह खोज्या अपने अंदर दा. ओह वासी है सुख मंदार दा..
अर्थ: जिसने अपने भीतर ही रास्ता खोजा. वह स्वयं, शांति के मंदिर में रहता है.

जित्थे चढ़दी ए ना लहेंदी ए. मुंह आई बात ने रेहेन्दी ए.
अर्थ: जहां कोई उत्थान या पतन नहीं है. जो मैं वास्तव में महसूस करता हूं उसे कहने से बचना मुश्किल है.

इक लाज़िम बात अदब दी ए...
अर्थ: ध्यान देने लायक एक बात है अगर मैं कह सकूं...

सानू बात मालूमी सब दी ए...
अर्थ: मुझे राज पता है सबमें से.

हर हर विच सूरत रब दी ऐ...
अर्थ: हर एक के अंदर भगवान का चेहरा है.

पतंग जाहिर पतंग छुपी मेहंदी ऐ.
अर्थ: किसी में छुपे किसी में प्रकट.

मूंह आई बात न रेहेन्दी ऐ ...
अर्थ: जो मैं वास्तव में महसूस करता हूं उसे कहने से बचना मुश्किल है.

ऐ तिलकन बाजी वेहरा ए...
अर्थ: यह दुनिया एक फिसलन भरी जगह है.

थम्म थम्म के तुरो हनेरा ए.
अर्थ: ध्यान से चलो अंधेरा है.

वरह अंदर वेखो केहरा ए, क्यों खल्कत बाहर ढूंढ़ेंडी ए?
अर्थ: अपने अंदर जाओ और देखो वहां कौन है. दुनिया के बाहर क्यों खोज रहे हो?

मुंह आई बात न रेहेन्डी ए...
अर्थ: जो मैं वास्तव में महसूस करता हूं उसे कहने से बचना मुश्किल है.

बुल्ला शौ असां टन वाख नै.
अर्थ: बुल्ला! रब हमसे अलग नहीं है.

बिन शौ दूजा कख नै...
अर्थ: रब के अलावा इस दुनिया में कुछ भी नहीं है.

पर वेखण वाली अख नै.
अर्थ: लेकिन समझदार आंख है लापता.

ताइयाँ जान जुदाइयाँ सेहेन्दी ए.
अर्थ: बस इसलिए आत्मा अलगाव को सहती है.

मुँह आई बात न रेहेन्दी ए.
अर्थ: जो मैं वास्तव में महसूस करता हूं उसे कहने से बचना मुश्किल है..

पढ़ पढ़ इलम किताबन दा.
अर्थ: किताबों से गहन ज्ञान प्राप्त करने के बाद.

तून ना रख लेया क़ाज़ी...
अर्थ: आपने अपना नाम काजी (मुस्लिम धर्मगुरु) रखा.

अर्थ मक्के मदीने गम आया
अर्थ: मक्का और मदीना की यात्रा करने के बाद...

तून ना रख लेया हाजी.
अर्थ: आपने अपना नाम हाजी रखा.

हाथ'च फेर के तलवारां...
अर्थ: तलवार चलाने के बाद.

तूं ना रख लेया गाजी...
अर्थ: आपने अपना नाम योद्धा रखा.

बुल्ला तून की हासिल कीता?
अर्थ: बुल्ला! आपने क्या हासिल किया?

जे यार ना राखेया राजी?
अर्थ: अगर तू अपने रब के प्रति सच्चा न रहा?

सीख- 


बुल्ले के अनुसार, आप चाहे कितनी भी पूजा कर लें, मक्का चले जाएं, गंगा स्नान कर लें या फिर उपवास कर लें. रब को तभी पाया जा सकता है, जब आप अपने भीतर के अंहकार को खत्म करेंगे.
• बुल्ले शाह यह भी कहते हैं कि जिस सच को बोलने से तबाही मच जाती है, तो झूठ बोलकर कुछ बचा लेना ही बेहतर है.
• बुल्ले शाह कहते हैं कि, हर किसी में ईश्वर है बस किसी में छिपे हुए है तो किसी में प्रकट. लेकिन मुश्किल यह है कि समझदार आंखें ही लापता है.
• बुल्ले शाह कहते हैं कि, दुनिया में अलग-अलग कार्य कर अपने कौशल और शिक्षा के आधार पर कई नाम और पद मिल जाते हैं. लेकिन ये सब हासिल करने के बाद अगर आप अपने रब के प्रति ही सच्चे न रहें तो आपने क्या हासिल किया.

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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