त्रेता युग में जब रावण ने सीताहरण किया और माता सीता को लेकर लंका पहुंचे तब कई बार मंदोदिरी ने रावण को समझाया था और ऐसा ना करने की नसीहत दी थी. लेकिन रावण अहंकार में डूबा था. वो खुद को सबसे पराक्रमी और वीर समझने की भूल कर रहा था. उसे लग रहा था कि वो इस धरा पर सभी को पराजित कर सकता है. इसीलिए उसने मंदोदिरी की बात को हर बार अनसुना किया…
इस बात से अंजान कि इस पृथ्वी पर उससे भी बलवीर हैं क्योंकि वो धर्म के मार्ग पर चल रहे हैं और रावण अधर्म की इसीलिए उसकी हार सुनिश्चित है. वो डटा रहा अपनी ज़िद पर और उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा. राम लंका पहुंचे और रावण के साथ युद्ध का ऐलान किया. तब भी मंदोदिरी ने रावण को युद्ध ना करने की सलाह देते हुए माता सीता को वापस जाने देने की बात समझाई थी लेकिन रावण ने फिर भी अपनी धर्मपत्नी की बात को नहीं सुना. नतीजा ये हुआ कि देखते ही देखते रावण का वंश उसकी आंखों के आगे नष्ट हो गया और आखिर में वो भी श्री राम के हाथों में युद्धा में मारा गया.
पत्नी की सलाह मानना भी है ज़रुरी
यह प्रसंग यही सीख देता है कि ज़िंदगी में कई मोड़ ऐसे आते हैं जहां पति को पत्नी व पत्नी को पति की बात मान लेनी चाहिए. क्योंकि गलत काम या ज़िंदगी में गलत फैसला दोनों में से कोई भी करे इसका परिणाम दोनों को ही भुगतना पड़ता है. इसीलिए ज़रुरी है कि दोनों के बीच ऐसा तालमेल हो कि एक दूसरे की बात को सही व गलत दोनों के चश्मे से देखते हुए जो सही हो उसे चुन सके. यानि ज़रुरी है कि दोनों एक दूसरे की बातों को तरजीह दें और बात मानें भी.
सुखी जीवन का सूत्र है ये
कहते है सुखी वैवाहिक जीवन का यही सूत्र माना जाता है जहां एक दूसरे का सम्मान व एक दूसरे की बात को प्राथमिकता दी जाती हो. और ज़रुरत की जगह दोनों अच्छे सलाहकार के रूप में सामने आए.