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भगवान काल-भैरव के नाम पर क्या शराब पीना उचित है? जानिए काल भैरव जयंती का शास्त्रीय स्वरूप

काल भैरव को शराब चढ़ाए जाने के कारण लोग भी शराब पीते हैं. लेकिन यह कहां तक उचित है? धार्मिक ग्रंथों के जानकार अंशुल पांडे से जानते और समझते हैं भगवान काल भैरव के नाम पर शराब पीने का शास्त्रीय स्वरूप.

भगवान काल भैरव के नाम पर शराब पीना उपयुक्त है? काल-भैरव जयंती का शास्त्रीय स्वरूप.

वैसे तो प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बाबा काल भैरव को समर्पित है. इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है, लेकिन मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान काल-भैरव का अवतरण हुआ था. ग्रंथों में काल भैरव को भगवान शिव का ही स्वरूप बताया गया है पर वास्तव में इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है शायद इसी रूप में सम्भव होता है. परन्तु अपने भक्तों के लिए भैरव कृपालु, कल्याणकारी और जल्दी ही प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं. वहीं गलत काम करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं.

चलिए अब काल भैरव और काल भैरव जयंती का शास्त्रीय पक्ष जानते हैं. शिव पुराण शतरुद्रसंहिता 8.2 (भैरवः पूर्णरूपो हि शङ्करस्य परात्मनः) अनुसार, काल-भैरव जी परमात्मा शंकर के पूर्णरूप हैं, शिवजी की माया से मोहित मूर्ख लोग उन्हें नहीं जान पाते.

काल-भैरव जयंती का उल्लेख आपको शिव पुराण शतरुद्रसंहिता 9.30 में मिलता है: –
कृष्णाष्टम्यां तु मार्गस्य मासस्य परमेश्वरः । आविर्बभूव सल्लीलो भैरवात्मा सतां प्रियः॥ 63

अर्थात: सुन्दर लीला करने वाले, सज्जनों के प्रिय, भैरवात्मा परमेश्वर शिव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को आविर्भूत हुए. इसके अगले श्लोक में वर्णित हैं कि, जो मनुष्य मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को काल-भैरव की सन्निधि में उपवास करके जागरण करता है, वह महान पापों से मुक्त हो जाता है. जो मनुष्य अन्यत्र भी भक्तिपूर्वक जागरण के सहित इस व्रत को करेगा, वह महापापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेगा. प्राणी के द्वारा लाखों जन्मों में किया गया जो पाप है, वह सभी काल भैरव के दर्शन करने से लुप्त हो जाता है. जो काल भैरव के भक्तों का अपराध करता है, वह मूर्ख दुःखित होकर पुनः-पुनः दुर्गति को प्राप्त करता रहता है. कारागार में पड़ा हुआ अथवा भयंकर कष्टमें फंसा हुआ प्राणी भी भैरव की भी भक्ति करके पापों से छुटकारा पाता हैं.

काशी में रहने वालों के लिए इस दिवस पूजन करना अनिवार्य है क्योंकि शिव पुराण शतरुद्रसंहितायां 9.70 अनुसार: –
कालराजं न यः काश्यां प्रतिभूताष्टमीकुजम्। भजेत्तस्य क्षयं पुण्यं कृष्णपक्षे यथा शशी।।

अर्थात: जो मंगलवार, चतुर्दशी तथा अष्टमी के दिन काशी में रहने वाले कालराज (कालभैराव) का भजन नहीं करता है, उसका पुण्य कृष्णपक्ष के चन्द्रमा के समान क्षीण हो जाता है.

शिव पुराण शतरुद्रसंहितायां 9.55 अनुसार, भयंकर आकृति वाले काल-भैरव के उस क्षेत्र में प्रवेश करने मात्र से ही ब्रह्म हत्या उसी समय हाहाकार करके पाताल में चली गयी.

भैरव शब्द का अर्थ: भया सर्वम् रवयति सर्वदो व्यापकोऽखिले। इति भैरवशब्दस्य सन्ततोच्चारणाच्छिवः ॥ 130॥ (विज्ञानभैरव तन्त्रम्)

अर्थात: ’भैरव’ शब्द उसका अर्थ है जो सभी भय और आतंक को दूर कर देता है, जो चिल्लाता और रोता है, जो सब कुछ देता है, और जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है. जो व्यक्ति लगातार भैरव शब्द का जप करता है वह शिव के साथ एक हो जाता है.

काल भैरव से जुड़ी कुछ भ्रांतियां:  कई लोग भगवान काल भैरव के नाम पर मदिरा पान (शराब) का सेवन करते हैं. ये महान लोग कहते हैं कि,भगवान काल भैरव को शराब चढ़ाई जाती है इसलिए इसका सेवन हमें भी करना चाहिए. चलिए इन महात्माओं का शास्त्रीय खंडन करते हैं 4 उदाहरण देकर.

  • पहला प्रमाण काली तंत्र से देता हूं. यह सच है कि तंत्रों में मदिरा (मद्यपान) का वर्णन कई बार आया है. लेकिन कई शब्दों का अर्थ का गूढ़ रहस्य होता है और तंत्र विद्या तो गुरु-शिष्य परंपरा से पढ़ी जाती है, अगर ऐसा ना हुआ तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है. आचार्य राजेश दीक्षित द्वारा संपादित काली तंत्र अध्याय क्रमांक 1 अनुसार, मद्यपान का आशय है- कुंडलिनी को जगाकर ऊपर उठाएं तथा षट् चक्र का भेदन करते हुए सहस्रार में लेजाकर, शिव-शक्ति की समरसता के आनन्दामृत का बारम्बार पान करना चहिए. कुण्डलिनी की मूलाधार चक्र अर्थात पृथ्वी तत्व से उठाकर सहस्त्रार में से जाने से जिस आनन्द रूपी अमृत की उपलब्धि होती है, यही 'मद्यपान' है और ऐसे अमृत रूपी मद्य का पान करने से पुनर्जन्म नहीं होता. इससे प्रमाणित होता हैं की मदिरा पान का अर्थ तंत्रों में अलग अर्थ है.
  • दूसरा प्रमाण हरित स्मृति से दे रहा हूं जहां से वर्णित है कि जो भगवान के कर्मकाण्ड कार्य हैं वह मनुष्यों को नहीं करने चाहिए: –अनुष्ठितं तु यद्देवैर्मुनिभिर्यदनुष्ठितम्। नानुष्ठेयं मनुष्यैस्तत्तदुक्तं कर्म आचरेत्॥ (हरित स्मृति)
    अर्थात: देवताओं और ऋषियों द्वारा जो भी कुछ उपरोक्त कर्मकाण्ड किया गया था वे मनुष्यों को नहीं करना चाहिए.
  • तीसरा प्रमाण महाभारत से दे रहा हूं जहां भगवान शिव साक्षात पार्वती को शराब पीने वालों की निंदा और उसका दंड बताते हैं. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय क्रमांक 145 अनुसार, भगवान शिव कहते हैं "हे पार्वती अब मैं मदिरा पीने के दोष बतलाता हूं, मदिरा पीने वाले उसे पीकर नशे में अट्टहास करते हैं, अंट-संट बातें बकते हैं, कितने ही प्रसन्न होकर नाचते हैं और भले-बुरे गीत गाते हैं. वे आपस में इच्छानुसार कलह करते और एक दूसरे को मारते-पीटते हैं. कभी सहसा दौड़ पड़ते हैं, कभी लड़खड़ाते और गिरते हैं. वहां-जहां कहीं भी अनुचित बातें बकने लगते हैं और कभी नंग-धडंग हो हाथ-पैर पटकते हुए अचेत-से हो जाते हैं. जो महामोह में डालने वाली मदिरा पीते हैं, वे मनुष्य पापी होते हैं. पी हुई मदिरा मनुष्य के धैर्य, लज्जा और बुद्धि को नष्ट कर देती है. इससे मनुष्य निर्लज और बेहया हो जाते हैं. शराब पीने वाला मनुष्य उसे पीकर बुद्धि का नाश हो जाने से कर्तव्य और अकर्तव्य का ज्ञान न रह जाने से, इच्छानुसार कार्य करने से तथा विद्वानों की आज्ञा के अधीन न रहने से पाप को ही प्राप्त होता है.
  • मदिरा पीने वाला पुरुष जगत् ‌में अपमानित होता है. मदिरा पीने वाले मित्रों में फूट डालता हैं, सब कुछ खाता और हर समय अशुद्ध रहता है. वह स्वयं हर प्रकार से नष्ट होकर विद्वान् विवेकी पुरुषों से झगड़ा किया करता हैं. सर्वथा रूखा, कड़वा और भयंकर वचन बोलता रहता है. वह मतवाले होकर गुरुजनों से बहकी-बहकी बातें करता है, परायी स्त्रियों से बलात्कार करते हैं, धूर्ती और जुआरियों के साथ बैठकर सलाह करते हैं और कभी किसी- की कही हुई हितकर बात भी नहीं सुनता है. इस प्रकार मदिरा पीने वाले में बहुत-से दोष हैं. वे केवल नरक में जाते हैं. इसलिए अपना हित चाहने वाले सत्पुरुर्षो ने मदिरा पान का सर्वथा त्याग किया है. यदि सदाचार की रक्षा- के लिये सत्पुरुष मदिरा पीना न छोड़े तो यह सारा जगत मर्यादा रहित और अकर्मण्य हो जाय (यह शरीर- सम्बन्धी महापाप हैं). अतः श्रेष्ठ पुरुर्षोने बुद्धि की रक्षा के लिए मद्यपान को त्याग दे". 

इससे यह प्रमाणित होता हैं की शिव जी स्वयं नशा का विरोध कर रहे हैं. कई लोग शिव जी द्वारा ’महाभारत’ मे कही गई बात को भी नकारेंगे और तर्क पर आधारित बात करेंगे. चलिए फिर हम भी तर्क से आपको पूछते हैं कि भगवान शिव ने विष का भी सेवन किया था तो क्या आप विषपान भी करेंगे? नहीं ना? तो फिर भगवान शिव या भैरवा के नाम पर शराब पीना बंद करिए. आपको शराब पीना है तो वह आपका निजी विकल्प है. काल भैरव जयंती के दिन बाबा काल भैरव जी की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. आगे हम जानते हैं काल भैरव जयंती की पूजा का मुहूर्त और महत्व क्या है. 

भैरव जयंती की पूजा मुहूर्त और महत्व (Kaal Bhairav Jayanti Puja Muhurat and Importance)

पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर 2023 दिन सोमवार रात 9 बजकर 59 मिनट पर आरंभ होगी. इसका समापन 6 दिसंबर 2023 दिन बुधवार को रात में 12 बजकर 37 मिनट पर होगा. हिंदू धर्म में किसी भी व्रत, पूजा एवं अनुष्ठान के लिए उदया तिथि को उत्तम माना जाता है. ऐसे में बाबा काल भैरव की जयंती 5 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी.

काल भैरव जयंती 2023 पूजा मुहूर्त दिन में पूजा का समय 5 दिसंबर सुबह 10 बजकर 53 मिनट से दोपहर 1 बजकर 29 मिनट तक और रात में पूजा का समयव 11 बजकर 44 मिनट से रात 12 बजकर 39 मिनट तक का है (आप अपनें निजी ज्योतिष के अनुसार भी कर सकते हैं क्योंकि सबकी गणना अलग-अलग होती है).

बाबा भैरव की पूजा विधि

लौकिक परंपरा अनुसार, इस दिन प्रातः स्नान आदि करने के पश्चात व्रत आरम्भ करना चाहिए. वैसे तो काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है. इस दिन सन्ध्या को किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाना चाहिए. फिर फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करनी चाहिए. वहीं बैठकर कालभैरव भगवान की चालीसा को पढ़ें. पूजन पूर्ण होने के बाद आरती करें और जानें-अनजाने हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे. काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है. ऐसे में यदि आप काल भैरव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो इनकी जयंती के दिन काले कुत्ते को भोजन खिलाएं.

ये भी पढ़ें: Drumstick: सहजन को आयुर्वेदिक चिकित्सक क्यों अमृत का दर्जा देते हैं? जानिए सहजन का शास्त्रीय स्वरूप

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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